झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

सुमन, सु-मन से बाहर झाँको

सुमन, सु-मन से बाहर झाँको
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विविध-भाव के मुक्तक
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(1)
कृषक-श्रमिक के काम अलग पर होती किस्मत एक है
संसद में वे पक्ष, विपक्षी, लेकिन फितरत एक है
सच्चे साधु या व्यभिचारी की पहचान सुमन मुश्किल
चोर सिपाही अलग अलग पर लगभग नीयत एक है
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(2)
स्वप्न दिखकर स्वप्न बेचना, उनकी बात निराली है
भला खरीदे जनता कैसे, जिनकी जेबें खाली है
बाजीगर बन के जब शासक, मीठी बातें बतियाते
सुमन विवश होकर यह सोचे, इनकी नीयत काली है
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(3)
राजनीति की मंडी देखो, हर नेता में ठना हुआ है
साथ बैठकर संसद में भी, इक दूजे पर तना हुआ है
बन ज्ञानी समझाता नेता, जो खुद को न समझ सका
बता सुमन को शब्द ये नेता, किन अर्थों में बना हुआ है
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(4)
आते जाते लोगों में भी, अपनेपन का स्वाद मिला
पुलकित मन तो ये जग सारा, खुशियों से आबाद मिला
हाल पूछता अगर सुमन तो, अक्सर लोग यही कहते
जीते मरते जिनकी खातिर, उनसे ही अवसाद मिला
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(5)
आस पास में जिससे पूछो, सबको अपना गम दिखता
रिश्तों में अनबन होने पर, अपने घर में तम दिखता
अगर उजाले की ख्वाहिश तो, नित सोचो ठंढे दिल से
सुमन, सु-मन से बाहर झाँको,क्या सुन्दर मौसम दिखता

श्यामल सुमन