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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांचवें आयुर्वेद दिवस पर दो आयुर्वेद संस्थानों को राष्ट्र को समर्पित करेंगे

यह आयुर्वेद संस्थान भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं
कोविड-19 महामारी की चुनौतियों का सामना करने में आयुष की पहल और योगदान
वैद्य राजेश कोटेचा, सचिव, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार कार्तिक माह की त्रयोदशी को धन्वंतरी जयंती मनाई जाती है, जो धनतेरस के नाम से प्रसिद्ध है। दीपावली का त्योहार धनतेरस से शुरू होता है। चार साल पहले, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा इस दिन को आयुर्वेद दिवस के रूप में घोषित किया गया था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांचवें आयुर्वेद दिवस के अवसर पर, 13 नवंबर, 2020 को दो आयुर्वेद संस्थानों को राष्ट्र को समर्पित करेंगे। यह आयुर्वेद संस्थान भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं। यह संस्थान हैं: इंस्टीट्यूट ऑफ टीचिंग एंड रिसर्च इन आयुर्वेद (आईटीआरए), जामनगर, जिसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा दिया गया है तथा राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (एनआईए), जयपुर, जिसे शिक्षा मंत्रालय द्वारा यूजीसी की नए सिरे से (डी नोवो) श्रेणी के तहत विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जायेगा।
वर्तमान की कुछ अत्यावश्यक स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों के समाधान के लिए पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को अपनाने की मांग पूरे विश्व स्तर पर बढ़ रही है। इसके लिए पारंपरिक विषयों में अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त चिकित्सा संस्थानों की आवश्यकता है। आईटीआरए, जामनगर और एनआईए, जयपुर अपने संशोधित स्वरूप में इस उद्देश्य को पूरा करेंगे।
भारत सरकार ने पूर्व के इंस्टीट्यूट ऑफ पीजी टीचिंग एंड रिसर्च इन आयुर्वेद (आईपीजीटीआरए), जामनगर को संसद द्वारा पारित अधिनियम के तहत राष्ट्रीय महत्व के संस्थान (आईएनआई) का दर्जा दिया है और इसके लिए गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय के परिसर, जामनगर में स्थित आयुर्वेद संस्थानों का एकीकरण किया गया है। इस एकीकरण के माध्यम से गुजरात के जामनगर में इंस्टीट्यूट ऑफ टीचिंग एंड रिसर्च इन आयुर्वेद (आईटीआरए) की स्थापना की गयी है। राष्ट्रीय महत्व का दर्जा मिलने से संस्थान को आयुर्वेद शिक्षा के मानक को उन्नत करने; राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मांगों के अनुसार विभिन्न पाठ्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करने; उन्नत मूल्यांकन पद्धति को अपनाने और अधिक से अधिक साक्ष्य उत्पन्न करने के लिए अनुसंधान में उत्कृष्टता प्राप्त करने की स्वायत्ता मिलेगी। आयुर्वेद के मजबूत होने तथा इसके रोकथाम और उपचारात्मक दृष्टिकोण अपनाने से किफायती समाधान प्राप्त होंगे और इस प्रकार स्वास्थ्य पर होने वाले सरकारी खर्च में कमी आयेगी।
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान जयपुर की 175 वर्षों से अधिक की गौरवशाली विरासत रही है। जयपुर में आयुर्वेद शिक्षा का उद्भव वर्ष 1845 में एक छोटे से विद्यालय में हुआ था, जो बाद में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के रूप में परिवर्तित होकर सामने आया। जयपुर के तत्कालीन राजा ने इस पाठशाला की लोकप्रियता और उपयोगिता की सराहना की तथा इस विद्यालय को अपना संरक्षण प्रदान किया और वर्ष 1865 में इसका नाम बदलकर महाराजा संस्कृत महाविद्यालय कर दिया गया, जिसमें आयुर्वेद एक स्वतंत्र विभाग के रूप में संचालित होने लगा। इसके पश्चात जयपुर में आयुर्वेद शिक्षा 1946 में माधव विलास पैलेस में स्थानांतरित कर दी गई, जिसका नाम राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय था। वर्ष 1976 में जब सरकार भारत में उच्च और सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली आयुर्वेदिक शिक्षा, प्रशिक्षण और अनुसंधान के लिए संस्थान की स्थापना करने के लिए विचार कर रही थी, तब इस कॉलेज को भारत सरकार के तहत एक स्वायत्त निकाय बनाकर इसे राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के रूप में चयनित और अपग्रेड किया गया था। अब इस संस्थान को विश्वविद्यालय के रूप में परिवर्तित करने पर विचार किया गया है।
यह कोविड-19 महामारी के नियंत्रण के लिए आयुष मंत्रालय के प्रयासों तथा योगदान के बारे में समझने और उनकी समीक्षा करने का एक अच्छा अवसर है, क्योंकि कोविड-19 संकट मानव जाति के सामने आई अब तक की सबसे खराब स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है। कोविड योद्धाओं के रूप में योगदान के माध्यम से और कोविड के खिलाफ जारी लड़ाई में बुनियादी सुविधाओं का उपयोग करके स्वास्थ्यकर्मियों के रूप में पूरा समर्थन देने के अलावा आयुष मंत्रालय ने कोविड-19 महामारी के प्रभाव को सीमित करने के लिए आयुष-आधारित प्रथाओं की क्षमता में वृद्धि करने के लिए अनेक कदम उठाये हैं। प्रारंभिक कदम के रूप में निवारक स्वास्थ्य उपायों तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार के लिए स्व-देखभाल के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जिनका माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा एक ट्वीट के जरिए समर्थन किया गया था। 14 अप्रैल 2020 को प्रधानमंत्री की ओर से इसके आगे के लिए अनुमोदन किया गया, जिसमें सात चरणों की बात कही गई थी, जिसमें से एक रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करने के लिए आयुष मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करना भी शामिल था। आयुष कोविड-19 डैशबोर्ड को हितधारकों में कोविड-19 से संबंधित आयुष की विशेषताओं, वैज्ञानिक जानकारी और दिशा-निर्देशों का प्रसार करने के लिए शुरू किया गया था, जो इस कोविड चुनौती से निपटने के लिए संभावित मंच के रूप में सफलतापूर्वक अपनी सेवा दे रहा है। आयुष मंत्रालय द्वारा 1 अप्रैल 2020 को किसी भी भ्रामक विज्ञापन को नियंत्रित करने के लिए तथा कोविड-19 उपचार के लिए आयुष से संबंधित दावों के प्रचार और विज्ञापन को रोकने का आदेश जारी किया गया था।
यूजीसी के उपाध्यक्ष प्रोफेसर भूषण पटवर्धन की अध्यक्षता में एक अंतर अनुशासनात्मक आयुष अनुसंधान एवं विकास कार्यबल का गठन किया गया था। इसमें आईसीएमआर, डीबीटी, सीएसआईआर, एआईआईएमएस और बड़े आयुष संस्थानों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। इसका उद्देश्य कोविड-19 में आयुष की भूमिका की पहचान करना और वास्तविक प्रमाण सृजन हेतु अध्ययन के वैज्ञानिक प्रारूपों का दृढ़ता से पता लगाना था। इस अंतर अनुशासनात्मक आयुष अनुसंधान एवं विकास कार्यबल ने प्रोफिलैक्टिक अध्ययनों के लिए विभिन्न क्लीनिकल शोध प्रारूप विकसित किए हैं और कोविड-19 से जुड़े मामलों में अतिरिक्त उपायों पर आधारित हैं। इसके अलावा इस कार्यबल ने आयुष स्वास्थ्य व्यवस्था के अंतर्गत पंजीकृत स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के लिए दिशा-निर्देश भी तैयार किए हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र के जाने-माने विशेषज्ञों की देख-रेख में तैयार किए गए हैं। मंत्रालय ने कोविड-19 से मुकाबले के लिए विभिन्न पक्षकारों और जन सामान्य के अनुभवों और प्रतिक्रियाओं को संकलित कर आयुष आधारित उपाय किए हैं, इसके लिए क्राउडसोर्सिंग प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया गया। प्राप्त हुए 3000 से अधिक सुझावों में से कुछ का मंत्रालय की अतिरिक्त शोध योजना के अंतर्गत आगे के शोध के लिए इस्तेमाल भी किया गया।
मंत्रालय द्वारा 21 अप्रैल 2020 को जारी राजपत्रित अधिसूचना में वैज्ञानिकों और औषधि क्षेत्र के लिए सैद्धांतिक तौर पर दिशा-निर्देश दिए गए कि कोविड-19 पर आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी व्यवस्था से जुड़े शोध को अपना सहयोग दें। इस कार्यबल ने जाने-माने चिकित्सक, सीआरडी पुणे के डॉ. अरविंद चोपड़ा के सहयोग से एक मजबूत शोध प्रोटोकॉल विकसित किया है, जिस पर मंत्रालय ने कोविड-19 संबंधी आयुष उपायों पर चार अध्ययन शुरू किए, इसमें सीएसआईआर का सहयोग और आईसीएमआर का तकनीकी सहयोग था और यह देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न केंद्रों जैसे केजीएमयू लखनऊ, एमजीआईएमएस नागपुर, एआईआईए नई दिल्ली और मेदांता अस्पताल गुरुग्राम इत्यादि शामिल थे। मंत्रालय ने डीबीटी के सहयोग से अध्ययन आधारित प्री-क्लीनिकल पहल की शुरुआत की ताकि आगे साक्ष्य आधारित शोध को बढ़ावा दिया जा सके। वर्तमान समय में अंतर अनुशासनात्मक कार्यबल के सुझावों के आधार पर देश के अलग-अलग क्षेत्रों में आयुष मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले शोध परिषद और राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा 112 केंद्रों पर 88 शोध अध्ययन किए जा रहे हैं, जिसमें प्रोफिलैक्टिक उपाय संबंधी अध्ययन शामिल हैं। इसके लिए दिल्ली पुलिस के 80,000 कर्मी और प्रत्येक शोध परिषद एवं राष्ट्रीय संस्थान में 20,000 प्रतिभागियों को शामिल किया गया। आयुष संबंधी अलग से किए गए अतिरिक्त उपायों से जुड़े अध्ययन हैं। इसके अंतर्गत अवलोकन अध्ययन, सर्वे अध्ययन इत्यादि प्रकार के शोध एवं अध्ययन सम्मिलित हैं। इसके लिए डीबीटी, एम्स जोधपुर, एमजीआईएमएस वर्धा, केजीएमयू लखनऊ और मेदांता गुरुग्राम इत्यादि संस्थानों का सहयोग शामिल है।
1: आयुष मंत्रालय द्वारा कराये गये कोविड-19 से संबंधित अध्ययनों का एक स्नैपशॉट
अश्वगंधा, गुडूची-पिप्पली, यष्टिमधु, गुडूची घनवटी, च्यवनप्राश, आयुष-64, उच्च जोखिम वाली आबादी में रोगनिरोधी उपाय, मानक देखभाल के क्रम में अतिरिक्त उपचार और कोविड-19 पॉजिटिव मामलों में अलग से चलने वाले उपचार के तौर पर आयुष क्वाथ जैसे आयुष संबंधी उपायों के बारे में क्लीनिकल शोध अध्ययन किए जा रहे हैं। पूरे हो चुके अध्ययनों के विश्लेषण और चल रहे अध्ययनों के अंतरिम रुझानों ने आयुष संबंधी उपायों की रोगनिरोधी एवं चिकित्सीय क्षमता को दर्शाया है। इन अध्ययनों के मुख्य नतीजों ने कोविड-19 के खिलाफ बचाव के तौर पर अच्छे रोगनिरोधक (गुडूची, अश्वगंधा, च्यवनप्राश, आयुष क्वाथ) के रूप में; तेजी से स्वस्थ होने और आरटी-पीसीआर जांच के नकारात्मक नतीजे हासिल करने, जीवन की गुणवत्ता एवं तनाव में सुधार, अस्पताल में रहने की अवधि में कमी और जटिलताओं को आगे बढ़ने से रोकने (गुडूची घनवटी, आयुष-64) संबंधी नैदानिक सुरक्षा और प्रभावोत्पादकता को दिखाया है। आंकड़ों एवं प्रतिभागियों की सुरक्षा और अध्ययन के समुचित संचालन के लिए डेटा सेफ्टी एंड मॉनिटरिंग बोर्ड (डीएसएमबी) का भी गठन किया गया था। आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेदिक चिकित्सा के क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, घाना, ब्रिटेन, जर्मनी आदि देशों के साथ मिलकर क्लीनिकल शोध करने की पहल की है।
अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, दिल्ली के कोविड देखभाल केन्द्र द्वारा निकाले गये निष्कर्ष बेहद उत्साहजनक हैं। इस केन्द्र में, बिना किसी मौत के 400 से अधिक रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज किया गया है और उनमें से किसी को भी आईसीयू सहायता की जरूरत नहीं पड़ी। अस्पताल में भर्ती रहने के राष्ट्रीय औसत की तुलना में इस केन्द्र में भर्ती रहने का औसत बहुत ही कम है। इन रोगियों में से 93 प्रतिशत ने सिर्फ आयुर्वेद और योग से जुड़े उपायों का सेवन किया। यहां यह जानना भी दिलचस्प होगा कि इस केंद्र में सेवा करने वाला कोई भी स्वास्थ्यकर्मी कोविड से संक्रमित नहीं हुआ। अब तक, 200 से अधिक ऐसे स्वास्थ्य कार्यकर्ता सामने आये और उन सभी को कोविड रोगियों के साथ साप्ताहिक रोस्टर ड्यूटी के बाद जांच में निगेटिव पाया गया। यह सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ता कोविड रोगियों की देखभाल से संबंधित सख्त दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे थे। इसके अलावा, वे सभी गिलोय, च्यनप्राश और आयुष काढ़ा जैसे आयुष रोगनिरोधक का सेवन कर रहे थे।
आयुष संजीवनी मोबाईल ऐप आधारित एक अध्ययन का शुभारंभ स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और आयुष मंत्री श्रीपद नाइक द्वारा किया गया था। यह अध्ययन लोगों के बीच आयुष संबंधी हिमायत एवं कदमों की स्वीकृति एवं उसके उपयोग और कोविड -19 की रोकथाम में इनके प्रभावों के बारे में पता लगाने के लिए किया गया था। इस अध्ययन के लिए देश भर से 1,47,89,827 स्वास्थ्य सहायता मांगने वाले लोगों से जुड़ा संचयी आंकड़ा इस मोबाईल ऐप द्वारा एकत्र किया गया। कुल 7, 23,459 उत्तरदाताओं के आंकड़ों में से, 85.1% ने कोविड-19 की रोकथाम के लिए आयुष संबंधी उपायों का उपयोग करने की सूचना दी, जिनमें से 89.8% को इन उपायों से लाभ हुआ। कुल 63.4% उपयोगकर्ताओं ने भूख, आंत की आदत, नींद, मानसिक स्थिति जैसे स्वास्थ्य के सामान्य मापदंडों में सुधार की सूचना दी गयी। इस ऐप के माध्यम से लगभग 74,567 चिकित्सकों ने आयुष संबंधी उपायों के उपयोग के अपने पैटर्न की सूचना दी।
2- आयुष संजीवनी ऐप आधारित प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन – कोविड-19 महामारी के दौरान आयुष रोग निरोधक उपायों का उपयोग करने पर सार्वजनिक प्रतिक्रिमया
मंत्रालय ने परिणामों और अंतरिम रुझानों को स्पष्ट करने के लिए ‘नेशनल क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल: कोविड-19’ में आयुर्वेद और योग हस्तक्षेपों के एकीकरण के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के पूर्व महानिदेशक डॉ. वीएम कटोच की अध्यक्षता में एक अंत:विषय समिति और देशभर के प्रतिष्ठित संस्थानों के विशेषज्ञों का समूह गठित किया। इस समिति ने कोविड-19 पर चल रहे और पूरे किए गए आयुष अध्ययनों के अंतरिम रुझानों और आयुष उपायों के स्वीकार्य प्रयोगात्मक एवं क्लीनिकल प्रकाशित आंकड़े के संभावित लाभ और सुरक्षा के संकेतों के आधार पर अपनी पहली रिपोर्ट और सुझावों को तैयार किया। इस समिति की रिपोर्ट के सुझावों के आधार पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कोविड-19 के प्रबंधन के लिए आयुर्वेद और योग पर आधारित नेशनल क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल जारी किया है। समान क्लीनिकल प्रबंधन को सक्षम करने के लिए इस प्रोटोकॉल को संयुक्त रूप से भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन और केंद्रीय आयुष राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीपद येसो नाइक ने 6 अक्टूबर, 2020 को जारी किया था। इसके अलावा भारत सरकार ने पोस्ट कोविड मैनेजमेंट प्रोटोकॉल जारी किया, जिसमें आयुर्वेद और योग उपायों को भी शामिल किया गया है।