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पूर्वी सिंहभूम के जिला सत्र न्यायाधीश अनिल मिश्रा की अदालत ने ०७-१२-२०२३ को दिलेश्वर महतो की हत्या के आरोपी सोनारी थाना के निवर्तमान थाना प्रभारी ललित कुमार की रिविज़न याचिका ख़ारिज कर दी

पूर्वी सिंहभूम के जिला सत्र न्यायाधीश अनिल मिश्रा की अदालत ने ०७-१२-२०२३ को दिलेश्वर महतो की हत्या के आरोपी सोनारी थाना के निवर्तमान थाना प्रभारी ललित कुमार की रिविज़न याचिका ख़ारिज कर दी। ज्ञातव्य है कि सोनारी थाना के पूर्व थाना प्रभारी ललित कुमार और गोलमुरी थाना के पूर्व थाना प्रभारी रंगनाथ शर्मा ने (जिसने फर्जीवाड़ा कर दिलेश्वर महतो की हत्या में दूसरे मुख्य आरोपी नन्द किशोर प्रसाद की जगह बेल ले ली थी) खुद को दिलेश्वर महतो की हत्या के आरोप से मुक्त करने की याचिका न्यायिक मजिस्ट्रेट रिचेश कुमार की अदालत में डाली थी जिसे न्यायिक मजिस्ट्रेट रिचेश कुमार ने २३-०९-२०२२ को ख़ारिज कर दी थी।
ज्ञातव्य है की दिलेश्वर महतो को सोनारी और गोलमुरी के पूर्व थाना। प्रभारियों ललित कुमार और नन्द किशोर प्रसाद २३-०७-२०१० को गोवा से बिना किसी ट्रांजिट वारंट के जमशेदपुर लाये थे और २६-०७-२०१० को तथा कथित तौर पर निजी मुचलके पर छोड़ दिया। उसके बाद से दिलेश्वर महतो का कहीं पता नहीं चला। उक्त दोनों थाना प्रभारियों ने दिलेश्वर महतो को जमशेदपुर में मजिस्ट्रेट कोर्ट में हाजिर नहीं किया न ही उसके परिवार वालों को दिलेश्वर महतो की गिरफ़्तारी की जानकारी दी। इस प्रकार इन दोनों थाना प्रभारियों ने न केवल भारतीय न्यायिक प्रक्रिया संहिता की धाराओं ४९, ५० , ५० अ, ५६ , ५७ और ६० अ बल्कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा डी के बासु मामले में गिरफ़्तारी पर दिए गए दिशा। निर्देशों का भी घोर उल्लंघन किया। भारतीय न्यायिक प्रक्रिया संहिता की धारा ५९ के अनुसार अगर किसी को निजी मुचलके पर छोड़ा गया तो उसकी गिरफ़्तारी प्रमाणित हो गई। फिर दिलेश्वर महतो को तो गोवा से लाया गया था।
ज्ञातव्य है कि मामले को २०१० में उच्च न्यायलय में हैबियस कार्पस पेटिशन के रूप में दाखिल किया गया था जिसे उच्च न्यायलय ने संज्ञान लेने के बाद भी २०११ में ख़ारिज कर दिया था। उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में एक एसएलपी (संख्या २४००/ २०१२) दाखिल किया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई से इस मामले की जाँच करवाई पर दिलेश्वर महतो का कहीं पता नहीं चला। सर्वोच्च न्यायालय ने ०२-०५-२०१४ को उक्त याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि सीबीआई की रपट के अनुसार दिलेश्वर महतो अब जिन्दा नहीं है पर दिलेश्वर महतो की पत्नी को निर्देश दिया जाता है कि वे इस मामले को उच्च न्यायालय में दाखिल करें।
इसके बाद दिलेश्वर महतो के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने २०१८ में उच्च न्यायालय झारखंड में झारखण्ड सरकार को दिलेश्वर महतो की हत्या करने के जुर्म में मुआवजा देने के लिए रिट पिटीशन दाखिल किया जिसे उच्च न्यायालय ने २०२१ में यह कहते हुए ख़ारिज किया कि झारखण्ड सरकार के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं। इस फैसले को चुनौती देते हुए अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी (संख्या १०२४/२०२२) दाखिल किया जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने यद्यपि १४-०२-२०२२ को ख़ारिज किया पर पिटीशनर के लिए सारे क़ानूनी दरवाजे खुले रखे। अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने उसके बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट रिचेश कुमार की अदालत में भारतीय न्याय प्रक्रिया संहिता धारा ९१ के तहत सर्वोच्च न्यायालय की रेजिस्ट्री से सीबीआई की रपट को तलब करने की गुहार लगाई जिसे अदालत ने मना कर दिया। इसके बाद अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने हार नहीं मानते हुए उक्त आदेश के खिलाफ सीधे सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी २४००/२०१२ में एक विविध याचिका लगाई और सर्वोच्च न्यायालय से मांग की कि उन्हें सीबीआई की रपट दिया जाये जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया और अपने ०६-०२-२०२३ के आदेश के द्वारा सीबीआई को अपनी रपट देने को कहा पूर्वी सिंहभूम के जिला सत्र न्यायाधीश अनिल मिश्रा की अदालत ने अदालतों के आदेशों, सीबीआई की रपट, दस्तावेजों, अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव की दलीलों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित न्यायिक मिसालों का हवाला देते हुए ललित कुमार और रंगनाथ शर्मा की रिविज़न पेटिशन ख़ारिज कर दी। इस मामले में अधिवक्ता अखिलेश श्रीवस्ता के अलावे अमिताभ कुमार, मंजरी सिन्हा और निर्मल घोष ने बहस की।