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नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का सतत प्रसंस्करण : निदेशक डाक्टर प्रो हरीश हिरानी

लगातार बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण की तीव्र गति के साथ-साथ, देश अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या के रूप में एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। एक अध्ययन के अनुसार नगरपालिका कचरे की मात्रामे तेज गति से वृद्धि हो रही है, जिसके वर्तमान में अनुमानित लगभग 100 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष से बढ़कर 2030 तक लगभग 150 मिलियन मीट्रिक टन के चिंतजनक स्तर तक पहुंचने का अनुमान है।कचरे का यह निरंतर बढ़ता हुआ पहाड़ देश के नीति नियंताओं और पर्यावरणविदों से लेकर आम लोगों के लिए भी एक गंभीर चिंता का विषय है। उचित वैज्ञानिक उपचार के बिना वर्तमान दर पर कचरे के अंधाधुंध डंपिंग से प्रति वर्ष अतिरिक्त लैंडफिल क्षेत्र की आवश्यकता एक अन्य गम्भीर चुनौती है । अनुचित अपशिष्ट निपटान लैंडफिल क्षेत्र के आस-पास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य को भी नकारत्मक रूप से प्रभावित करता है, और इसलिए, वैज्ञानिक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन आज के संदर्भ में अपरिहार्य हो जाता है।
प्लाज़्मा आर्क गैसीकरण प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए एक विकल्प है जिससे कचरे की मात्रा को 95% तक कम किया जा सकता है। यह प्रक्रिया प्लाज्मा रिएक्टर के अंदर उच्च तापमान प्लाज्मा आर्क (3000 डिग्री सेल्सियस से ऊपर) उत्पन्न करने के लिए बिजली की खपत करती है जो कचरे को सिनगैस में परिवर्तित करती है। यह सिनगैस जब गैस शोधन प्रणाली की एक श्रृंखला से गुजरती है, जिसमें उत्प्रेरक कनवर्टर, रेडॉक्स रिएक्टर, साइक्लोन सेपरेटर, स्क्रबर और कंडेनसर होते है, तो विद्युत उत्पन्न करने के लिए गैस इंजन में उपयोग के लिए तैयार होती है। अवशिष्ट राख को उचित रूप से सीमेंट के साथ मिश्रित और संसाधित करकेनिर्माण कार्य में ईंटों के रूप में उपयोग किया जा सकता है। वैज्ञानिक पद्धति और प्रक्रिया द्वारा’वेस्ट से वेल्थ’ के सृजन का यह एक उदहारण है। हालाँकि, यह तकनीक आर्थिक रूप से अधिक व्यावहारिक और संपोषणीय नहीं है क्योंकि इस तकनीक के द्वारा अपशिष्ट उपचार के लिए ऊर्जा की आवश्यकताएं बहुत अधिक हैं (~ 1.5 kWh / kg ,छोटेसंयंत्र(<100 MT क्षमता)से कचरे के प्रोसेसिंग के लिएऔर ~ 1.2 kWh / kg,100 मीट्रिक टन से अधिक कचरे के प्रोसेसिंग क्षमता वाले संयंत्र के रिमेक )। इसके अलावा, इलेक्ट्रोड खपत की उच्च दर (~ 500 मिलीग्राम / किग्रा अपशिष्ट संसाधित) के कारण भी यह प्रक्रिया महंगी और आर्थिक रूप से तर्कसंगत विकल्प नहीं मानी जा रही है। अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में उत्पन्न नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Waste/ MSW) में ज्यादातर कार्बनिक कचरे का एक बड़ा अंश (> 50%) होता है। जैविक कचरे के अवैज्ञानिक निपटान से ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन और अन्य वायु प्रदूषक पैदा होते हैं। MSW की अप्रभावी प्रसंस्करण भी कई बीमारियों की जड़ है क्योंकि डंप किए गए लैंडफिल, पैथोजेन, बैक्टीरिया और वायरस के घातक संदूषण हब में बदल जाते हैं। सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला प्रसंस्करण “कम्पोस्ट” भी उद्यमियों के लिए प्रभावशाली आर्थिक विकल्प नहीं देता है क्योंकि इसके लिए अधिक भूमि-स्थान, अधिक श्रम, प्रभावी कीटाणुशोधन के लिए पास्चुरीकरण की आवश्यकता होती है साथ ही,भारी धातुओं की उपस्थिति के कारण इसके उपयोग की सीमाए है । बारिश के मौसम में अत्यधिक नमी की उपस्थिति के कारण खाद का प्रबंधन अधिकमुश्किल हो जाता है।
सीएसआईआर की संस्था केंद्रीय मेकनिकल इन्जीनियरिग अनुसंदःआन संस्थान (CSIR- CMERI, Durgapur) ने म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट प्रोसेसिंग तकनीक विकसित कर ऊपर उल्लेख की गई चुनौतियो का वैज्ञानिक और नवाचार आधारित प्रभावी तथा किफायती समाधान प्रस्तुत किया है । इस तकनीक के अनुप्रयोग ने न केवल ठोस कचरे के विकेंद्रीकृत विघटन को प्राप्त करने में मदद की है, बल्कि सूखे पत्तों, सूखी घास जैसे बहुतायत से उपलब्ध निरर्थक सामानों से मूल्य वर्धित एंड-प्रोडक्ट्स बनाने में भी मदद की है। इसMSW प्रोसेसिंग फैसिलिटी को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF& CC), भारत सरकार द्वारा निर्धारित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम (SWM) 2016 के अनुरूप वैज्ञानिक तरीके से ठोस कचरे के निपटान के लिए विकसित किया गया है।CSIR-CMERI का प्राथमिक फोकस उन्नत अलगाव (सेग्रीगशन) तकनीक के माध्यम से आम लोगो और घरों को कचरे को अलग – अलग प्रकार मे छाटने की जिम्मेदारियों से मुक्त करना भी है।
यंत्रीकृत (मैकेनाइज्ड) सेग्रिगेशन सिस्टम, सॉलिड वेस्ट को धात्विक (मेटेलिक) वेस्ट [मेटल बॉडी, मेटल कंटेनर आदि],जैव-अपघटनीय (Bio-degradable)अपशिष्ट (खाद्य पदार्थ, सब्जियां, फल, घास इत्यादि), नॉन-बायोडिग्रेडेबल (प्लास्टिक, पैकेजिंग मटीरियल, पाउच, बोतल आदि)तथाअक्रिय (inert)अपशिष्ट (कांच, पत्थर आदि) मे अलग-अलग छांटता है। । कचरे का जैव-अपघटनीय घटक जैव-गैसीकरण (Bio Gasification) के रूप में जाने जाने वाले अवायवीय वातावरण में विघटित हो जाता है। इस प्रक्रिया में जैविक पदार्थों के रूपांतरण के माध्यम से बायोगैस को मुक्त किया जाता है। इस बायोगैस का उपयोग खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में किया जा सकता है। बिजली के उत्पादन के लिए भी इस गैस का उपयोग गैस इंजन में किया जा सकता है। इस प्रक्रिया मे बायोगैस संयंत्र से प्राप्त अवशिष्ट घोल मे केंचुए का उपयोग करवर्मी कम्पोस्टिग की प्राकृतिक प्रक्रिया के द्वारा खाद में बदल दिया जाता है। जैविक खेती में वर्मी-कम्पोस्ट का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है।
बायोमास अपशिष्ट जैसे सूखी पत्तियाँ, मृत शाखाएँ, सूखी घास आदि को पहले कटाकर उपयुक्त आकार दिया जाता है और उसके बाद बायोगैस डाइजेस्टर के घोल में मिलाया जाता है। यह मिश्रण ब्रिकेट के लिए फीडस्टॉक है, जिसे खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। इन ब्रिकेट्स का उपयोग गैसिफायर में सिन्गैस के उत्पादन के लिए भी किया जा रहा है जिसका उपयोग बिजली उत्पादन के लिए गैस इंजन में किया जा सकता है। ब्रिकेट के जलने से उत्पन्न राख को सीमेंट और पानी के साथ उचित अनुपात में मिलाकर निर्माण कार्य मे उपयोग किये जाने वाले ईंटों के उत्पादन के लिए किया जाता है ।
प्लास्टिक, सैनिटरी कचरे आदि से बने पॉलिमर कचरे को दो मुख्य प्रक्रियाओं, पायरोलिसिस और प्लाज्मा गैसीकरण के माध्यम से संशोधित किया जाता है। पाइरोलिसिस प्रक्रिया में उपयुक्त उत्प्रेरक की उपस्थिति में अवायवीय वातावरण में बहुलक (पोलीमर ) कचरे को 400 – 600 ° C के तापमान पर गर्म किया जाता है। बहुलक कचरे से वाष्पशील पदार्थ हीटिंग के परिणामस्वरूप निकलता है जो संघनित होकर पायरोलिसिस तेल उत्पन्न करता है। शुद्धिकरण के बाद बिना संघनित सिन्गैस और कच्चे पायरोलिसिस तेल का पुनः उपयोग हीटिंग उद्देश्यों के लिए किया जाता है और यह पूरी प्रक्रिया मे उर्जा के उपयोग के सन्दर्भ मे आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में मदद करता है। प्रक्रिया मे प्राप्त ठोस अपशिष्ट , जिसे “चार (Char)” कहते है उसे ईंट के उत्पादन के लिए, बायोगैस घोल (स्लरी) के साथ मिश्रित किया जाता है।
सैनिटरी आइटम जैसे मास्क, सैनिटरी नैपकिन, डायपर आदि का संशोधन उच्च तापमान प्लाज्मा का उपयोग कर किया जाता है। CSIR- CMERI की MSW सुविधायूवी-सी लाइट्स और हॉट-एयर कन्वेंशन विधियों के माध्यम प्रभावी रूप से कोविड चेन को तोड़ने के लिए विशेष कीटाणुशोधन क्षमताओं से युक्त है सीएसआईआर-सीएमईआरआई द्वारा विकसित विकेंद्रीकृत सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में वैज्ञानिक रूप से कोविड और कचरे में मौजूद अन्य वायरस युक्त कचरे सहित सभी प्रकार के ठोस अपशिष्ट का उचित और प्रभावी प्रबंधन करने के लिए पर्याप्त क्षमताएँ हैं। सौर पैनलों के माध्यम से ऊर्जा की आवश्यकता के संदर्भ में भी एकीकृत MSW पायलट प्लांट आत्मनिर्भर है, जो कि मिनी-ग्रिड मे अधिशेष ऊर्जा आपूर्ति भी कर सकता है।
विकेन्द्रीकृत (0.5 से 5.0 टन / दिन) एमएसडब्ल्यू की तकनीक और इसके सतत और धारणीय (आयातित डीजल के बोझ को कम करने और CO2 प्रदूषण समाप्त करने के लिए नगण्य परिवहन आवश्यकता ) प्रसंस्करण से 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन और “शून्य वेस्ट,शून्य लैंडफिल” शहर बनाने के सपने को साकार करने के अवसर खुलते हैं। आवासीय परिसरो , समुदायो और अलग – अलग इलाकों मे ऐसे विकेंद्रीकृत सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की स्थापना से स्थानीय कचरे का स्थानीय स्तर पर ही पर्यावरण के अनुकूल निपटान सम्भव होगा और वेस्ट से वास्तव मे वेल्थ की प्राप्ति होगी जिससे पहाड जैसी समस्या का वैज्ञानिक समाधान तो होगा ही , रोजगार के नए अवसर भी बढ़ेंगे .