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मनुष्य कुंठाओं से मुक्त होकर परम आत्मीय ईश्वर प्रेम की अनुभूति लाभ करता है – बैकुंठ कहलाता है

मनुष्य कुंठाओं से मुक्त होकर परम आत्मीय ईश्वर प्रेम की अनुभूति लाभ करता है – बैकुंठ कहलाता है.
जब परम पुरुष की गोद में पहुंचकर मनुष्य इन कुंठाओं से मुक्त होकर परम आत्मीय ईश्वर प्रेम की अनुभूति लाभ करता है – बैकुंठ कहलाता है

साधकों को चाहिए कुंठा रहित होकर कीर्तन करें बाबा भाव में रहे दिन रात कीर्तन करें बैकुंठ भाव में रहे

जमशेदपुर – जमशेदपुर एवं आसपास के क्षेत्र से काफी संख्या में आनंद मार्गी इस धर्म महासम्मेलन में भाग ले रहे हैं जो लोग इस धर्म महासम्मेलन में सशरीर उपस्थित नहीं है वह वेब टेलीकास्ट के माध्यम से इस कार्यक्रम का लाभ उठा रहे हैं पुरुलिया जिले के आनंद नगर आनंद मार्ग का हेड क्वार्टर विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन 30 दिसंबर प्रथम दिन प्रातः पांचजन्य से शुभारंभ हुआ देश और विदेश के दूरदराज से आनंदमार्गी साधक बड़ी संख्या में आ चुके हैं वह आने का सिलसिला जारी है.
आज श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने अपने प्रथम आध्यात्मिक उद्बोधन में ” बैकुंठ सर्वोच्च धाम ” वक्तव्य रखते हुए कहा कि अनेक धामों यथा गंगोत्री यमुनोत्री केदारनाथ धाम है उसी प्रकार एक धाम है बैकुंठ धाम. जहां किसी भी प्रकार की कोई संकोचन ना हो कुंठा ना हो अर्थात जहां किसी भी प्रकार की कोई संकुचित चिंता ना हो उन्होंने कहा कि यह कुंठाएं मानसिक होती है कुछ विशेष प्रकार की कुंठाएं हैं — हीनमान्यता और महा मान्यता जो परम पुरुष से मनुष्य को अलग रखता है. बैकुंठ मन की वह अवस्था है जहां ना तो हीनमान्यता है और ना ही महामान्यता है यह कहां है? जब परम पुरुष की गोद में पहुंचकर मनुष्य इन कुंठाओं से मुक्त होकर परम आत्मीय ईश्वर प्रेम की अनुभूति लाभ करता है – बैकुंठ कहलाता है.
एक सच्ची घटना के माध्यम से इस बात को उन्होंने और भी स्पष्ट किया यह घटना दो साधकों की उपस्थिति का वर्णन करता है जिसमें एक उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी थे और एक साधारण पुलिस बिहार पुलिस के मन में उपजे हिनमान्यता के भाव को बाबा उच्च पदस्थ अधिकारी के बराबर बैठाकर दूर किया परमपुरुष के निकट उनकी छत्रछाया में कोई कुंठा नहीं होता
आनंदमार्गीयो के लिए आनंद नगर में बैकुंठ भाव में रहे यहां आकर साधक आनंद की अनुभूति करते हुए कीर्तन करते हैं साधना करते हैं तब मन आनंद तरंगों में तरंगायीत रहता है क्योंकि बाबा “हरि” उनके मन में बस जाते हैं हरि रूप में भक्तों के मन में व्याप्त कुंठित विचारों को हरण कर लेते हैं और परम आनंद की अनुभूति कराते हैं उन्होंने कहा कि एक बार बाबा ने आनंदनगर में कहा था कि यहां मेरे बेटियां संकोच रहित रहती है उन्होंने कहा कि साधकों को चाहिए कुंठा रहित होकर कीर्तन करें बाबा भाव में रहे दिन रात कीर्तन करें यह हम सबो का बैकुंठ भाव का स्थान है आनंदनगर