झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

लौट सके मुस्कान जी

लौट सके मुस्कान जी
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चाहत है ऐसी दुनिया की, सब हो एक समान जी।
कब समझेंगे, इक दूजे को, अपने सा इन्सान जी।

कहते, पढते, सुनते आए, हम सब भाई भाई।
मगर चमन के अमन में किसने, जब तब आग लगाई।
हम सबको मिलके करना है, उनकी भी पहचान जी।।
कब समझेंगे इक दूजे को —–

हर युग में बदले हैं शासक, पर जनता का हाल वही।
उपजाए सबकी रोटी जो, अक्सर हैं कंगाल वही
कोशिश है कि उन चेहरों की, लौट सके मुस्कान जी।।
कब समझेंगे इक दूजे को —–

नित बेहतर दुनिया करने की, ख्वाब हमारे दिल में है।
मिले बराबर सबको आदर, जो भी जिस महफिल में है।
मुमकिन है तब सभी सुमन को, मिल पाए सम्मान जी।।
कब समझेंगे इक दूजे को —–

श्यामल सुमन