क्रोध की ज्वाला धधक रही है
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केवल सूरत चमक रही है
माया – नगरी दरक रही है
रोजी, रोटी के अभाव में
बेबस जनता फफक रही है
सबकी नाव डुबोयी फिर से
क्या करने की कसक रही है?
असली भ्रष्टाचार तुम्हीं से
जिसकी खुशबू महक रही है
भक्त बहुत बेचैन, सोचते
क्या पहले सी धमक रही है?
जनमत में अब धीरे धीरे
क्रोध की ज्वाला धधक रही है
तेरे डर से सिर्फ खबर में
सुमन ये बगिया चहक रही है
श्यामल सुमन
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