झारखण्ड वाणी

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कोरोना काल में मरीज के प्रियजनों की आपबीती

जमशेदपुर। शहर के स्थानीय अखबारों में रोज कोरोना से जुडी खबरें पढ़ कर रूह कांप जाती थी. शहर के एकमात्र सुप्रसिद्ध निजी अस्पताल की दुरव्यवस्था, लापरवाही और मनमाना व्यवहार से जुडी खबरें रोज ही दृष्टिगोचर हो जाती थी. यहाँ मुझे नाम बताने की जरूरत नहीं कि मेरा इशारा किस निजी अस्पताल की ओर है…. जी हाँ आपने सही समझा… हम शहर वासी इलाज के लिए तो बस इसी अस्पताल की ओर ही टकटकी लगाए रहते थे. कारण हमारे पास दूसरा कोई विकल्प ही नहीं था… जरा सोचिये क्या अपने प्रियजनों को इलाज के लिए हम कभी सरकारी अस्पताल एमजीएम लेकर जाते देखा? कदापि नहीं. एमजीएम के प्रति मैं भी आपकी तरह नकारात्मक भावनाओं से भरी हुई थी…
लेकिन मेरे साथ घटित एक घटना ने एमजीएम के प्रति मेरे नज़रिये को बदल कर रख दिया. मैं नतमस्तक हूँ एमजीएम के प्रति.
जी हाँ आज कोरोना काल में मरीजों की देखभाल में शहर के सरकारी अस्पताल जो जिम्मेदारी उठा रहे हैं… उसपर आपसबों का ध्यान खींचना चाहती हूँ. सबकुछ अपनी आँखों से देखा और अनुभव किया.
आज मेरे पापा को गये सोलह दिन हो गये. वे कोरोना पॉजिटिव थे. एकदिन अचानक उन्हें सांस लेने मैं तकलीफ हुई और मैं उन्हें लेकर शहर के उसी निजी अस्पताल में लेकर गई. पापा को तुरंत चिकित्सा की जरूरत थी. हाथ पैर जोड़ी…. पर इस अस्पताल ने उन्हें भर्ती लेने से इंकार कर दिया. वजह वेड नहीं.. एक अस्सी वर्षीय मरीज की तड़प भी उनकी सोयी हुई मानवता को जगा नहीं पायी . वे तड़प रहे थे और उनको भर्ती करवाने के लिए मैं सारे पैरवी कर रही थी. एक घंटे के जद्दोजहद के बाद हारकर बेमन से उन्हें लेकर एमजीएम आयी. मेरे एक फोन पर पापा को रिसीव करने के लिए वहाँ कर्मचारी तैयार थे. उनका वेड और ऑक्सीजन उनकी प्रतीक्षा कर रहा था. बिना किसी कागजी कार्यवाही की औपचारिकता निभाए उन्हें सबसे पहले चिकित्सा दी गई तब मुझे उनका पेपर बनाने के लिए भेजा गया.
यहाँ कोरोना मरीजों के इंतज़ाम जो मैंने देखा वह मेरी कल्पना से परे था.
कोरोना मरीज़ की देखभाल के लिए घर का अटेंडर एलान किया गया था. सोचिये निजी अस्पताल में मरीज को आइसोलेट कर जहाँ आधा मार दिया जाता है वहां एमजीएम में इस भयानक बीमारी मे अपनों से जोड़ कर बीमारी को आधा ख़त्म कर दिया जाता है. मरीज घर का खाना खा सकता है. डॉक्टर जब राउंड पर आते हैं तो मास्क लगा कर..
मरीजों की नब्ज़ को खुद जाँचते हैं. उनका हौसला बढ़ाते हैं…
निजी अस्पताल और एमजीएम की व्यवस्था की स्वयं तुलना करते जाइये. यह एमजीएम की सुन्दर व्यवस्था थी की मेरे पापा जो बेहद सिरियस थे वे 15 दिनों तक जूझारू योद्धा बनकर कोरोना से लडते रहे और कोरोना फाइटर बने…. उनकी जिद्द थी कि जबतक नेगेटिव नहीं हो जाता घर नहीं जाऊँगा. उन्होंने कोरोना को हरा दिया पर हार्ट फेल से फेल हो गये.
हमें संतोष इसबात का है कि अस्सी साल के इस अत्यंत सिरीयस मरीज़ के बचने की उम्मीद नहीं थी पर वे घर आ सके और हमें अपनी अर्थी को कन्धा देने का सौभाग्य प्रदान कर सके… और ये संभव हो सका क्योंकि वे शायद शहर के उस निजी अस्पताल में नहीं थे बल्कि एमजीएम में थे. जहाँ उनके बेटे उनके साथ थे. जो उन्हें घर का खाना खिलाते थे… उनकी सेवा कर… उनका मनोबल बढ़ाते थे… ऐसी बीमारी में अपनों का साथ बीमारी से लड़ने की ताकत देता है और अपनों से काट कर अलग करने से बीमारी से लड़ने की ताकत भला बुजुर्गो को कहा से आएगी जो खुद से उठकर बैठ भी नहीं सकते.
एमजीएम की इस सुन्दर व्यवस्था के लिए मैं स्वास्थ्य मंत्री की भूरी भूरी प्रशंसा करती हूँ जिन्होंने इस महामारी में एमजीएम में मानवता को सर्वोपरि रखा है… सर मैं नतमस्तक हूँ कि इस महामारी में आपने एमजीएम का वह ताना बाना बुना कि मरीज़ ठीक होकर घर जा रहे हैं…. एमजीएम अध्यक्ष अपनी व्यस्त दिनचर्या में स्वतः कोविड वार्ड में जाकर मरीजों का हाल चाल लेते हैं. राजेश बहादुर हर संभव सहायता के लिए तत्पर रहते है…
मेरा स्वास्थ्य मंत्री से अनुरोध है कि एमजीएम को दिल्ली एम्स की तरह बना दें. और सर आप ही ऐसा कर सकते हैं… हम शहरवासी आपसे गुहार लगाते हैं. मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि जमशेदपुर की जनता आपको हर संभव सहयोग देने के लिए तत्पर रहेगी… मैं सपरिवार एमजीएम के प्रति ताउम्र अहसान मंद रहूंगी. शुक्रिया… बहुत बहुत शुक्रिया..
एमजीएम की जय हो
एमजीएम उपाधीक्षक डॉ नकूल चौधरी स्वयं संज्ञान लेते हुए अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर कोविड वार्ड में राउंड लेते है…
एमजीएम की ये सेवा गदगद कर देती है