झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

कौवा कुचरै आँगन

कौवा कुचरै आँगन
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कान्हा! फागुन मास सुहावन।
ठंढ, गरम समतूल एहेन जे, पल पल लागै पावन।‌।
कान्हा! फागुन —–

हरियर लता, गाछ पर सगरो, नव-पल्लव के छाजन।
रंग बिरंगक पुष्प सुगंधित, जहिना चन्दन कानन।।
कान्हा! फागुन —–

होरी खेलय, दूर देश सँ, सभहक आबय साजन।
हमरो प्रीतम सम्भव औता, कौवा कुचरै आँगन।।
कान्हा! फागुन —–

तन मन वास मदन के एहेन, सब लागय मनभावन।
दूर सुमन जे पिया सँ हुनके, आंखि सँ बरसै सावन।।
कान्हा! फागुन —–

श्यामल सुमन