कुछ पाने की चाह नहीं अब, मिल जाए इन्कार नहीं
ये दुनिया प्यारी है इतनी, कैसे कह दूँ प्यार नहीं?
सुख-दुख भोगा इस जीवन में, पल पल ये महसूस किया
कदम कदम पर सीख जिन्दगी, कुछ भी है बेकार नहींं
बेहतर हो परिवेश हमारा, हम सबकी कोशिश रहती
फिर आपस में है झगड़ा क्यूँ, वो कारण स्वीकार नहीं
क्या सिहरन होती है दिल में, देख बेबसी लोगों की?
अगर नहीं तो हमको मानव, होने का अधिकार नहीं
नैतिकता और मूल्य-बोध पर, अच्छी बातें सब करते
बिना आचरण इन बातों को, मिला कभी आधार नहीं
अपने अन्दर हो सुधार तो, सारी दुनिया सुधरेगी
ये दुनिया परिवार हमारा, बस अपना परिवार नहीं
अपने अपने अनुभव से हम, आपस में बतियाते हैं
छोटी दुनिया भले सुमन की, मत समझो विस्तार नहीं
श्यामल सुमन
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