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जमशेदपुर में नगरनिगम बनाम औद्योगिक नगर

नगर निगम नहीं बनने से प्रत्येक दिन जमशेदपुर को पौने तीन करोड़ रुपए का नुक़सान उठाना पड़ रहा है

 

जमशेदपुर में नगर निगम बनाम औद्योगिक नगर का मामला इन दिनों चर्चा में है। मानवाधिकार कार्यकर्ता जवाहर लाल शर्मा द्वारा सन 1988 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका के रूप में उठाया गया था। सन 1989 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय देते हुए नगर निगम बनाने के पक्ष में फैसला दिया था।तत्कालीन बिहार सरकार ने जब नोटिफिकेशन जारी नहीं किया तो कोर्ट की अवमानना का मुकदमा याचिकाकर्ता द्वारा दायर किया गया और तब कहीं जाकर नगर निगम बनाने के लिए सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया। नोटिफिकेशन जारी होते ही टाटा स्टील द्वारा पूरे शहर में इसके खिलाफ जन आंदोलन शुरू करवा दिया गया। शहर के चौक चौराहों पर इसके खिलाफ बड़े-बड़े होर्डिंग लगाए गए। एक बार भारी संख्या में महिलाओं द्वारा जुलूस निकलवाया गया। विभिन्न धार्मिक संगठनों द्वारा विष्टुपुर मेन रोड के सामने टेंट लगाकर धरना दिया गया। शहर में नुक्कड़ नाटक, पर्चा बाँटना तथा विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक संगठनों के सहयोग से प्रचार का काम किया गया तथा हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया। एक दिन टाटा कंपनी के अफसरों का भी जुलूस निकला। डॉ. जे. जे .ईरानी ने सर्किट हाउस गोल चक्कर पर धरना दिया। रूसी मोदी ने अपने घर के सामने एक जनसभा कर सरकार को गंभीर चेतावनी भी दी। एक दिन करीब एक लाख लोगों का जुलूस बारी मैदान से लेकर तत्कालीन उपायुक्त के घर तक निकाला गया। देश विदेश के बड़े बड़े अखबारों के प्रतिनिधियों को जमशेदपुर बुलाकर लेख लिखवाया गया।। न्यूयार्क टाईम्स के एक संवाददाता ने भी याचिकाकर्ता  जवाहर लाल शर्मा से बातचीत करके न्यूज छापा। शहर में एक विचित्र माहौल बनाया गया। मानो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शहर पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा पर लोगों को मिलने वाली जन सुविधा तथा संवैधानिक लाभ खासकर तीसरे मताधिकार की बात को पूरी तरह से छिपा दिया गया। बात यहीं तक नहीं रही । टाटा स्टील ने जो जन आंदोलन चलाया इसके एवज में उसे अंतरराष्ट्रीय गोल्डन ग्लोब अवार्ड भी मिला।पर आज 32 वर्षों के बाद भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हुआ और नहीं शहर का चहुँमुखी विकास ही हुआ। आज भी जमशेदपुर देश में विकसित शहरों की सूची में काफी नीचे है। कोरोनाकाल मे शहर के लोगों की कंपनी अस्पतालों में जो दुर्गति हुई है इसे भुलाया नहीं जा सकता है। कई लोग बिना बेड, बिना वेंटीलेटर के कारण मरे हैं। यह अत्यंत दर्दनाक है। अब तक की सारी राजनीतिक पार्टियों की सरकारें तथा टाटा स्टील पूरे मामले में उदासीन रही है। अभी एक बात सामने आ रही है कि अगर जमशेदपुर में नगर निगम होता तो यहांँ कम से कम 1000 करोड़ रुपए का अनुदान केंद्र सरकार से आता और अगर स्मार्ट सिटी परियोजना में रहता जो कि जमशेदपुर वास्तव में था तो यहांँ और कई हजार करोड़ रुपयों का नियोजन होता। अब अगर हम मात्र 1000 करोड़ प्रति वर्ष भी मान लें तो वह नहीं मिलने की वजह से शहर को प्रतिदिन लगभग पौने तीन करोड़ का नुकसान होता आ रहा है जो पिछले कई वर्षों से हो रहा है। अब आप अंदाजा लगा लीजिए जिस शहर को रोज पौने तीन करोड़ रुपयों का नुकसान उठाना पड़ रहा हो अगर नगर निगम बन गया होता और वह मिल रहा होता तो शहर की काया पलट ही हो गई होती ।टाटा कंपनी लीज समझौते के तहत जो खर्च करती है या कर रही है जिसका हिसाब सार्वजनिक नहीं है वह अलग से होता है , ऐसे में इतनी बड़ी रकम से जमशेदपुर देश का नंबर वन शहर बन जाता। क्या आम जनता अब भी गुमराह रहेगी? क्या जनता को आगे आकर अपना संवैधानिक अधिकार नहीं लेना चाहिए? विभिन्न अदालतों से होता हुआ मामला पुन: सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया है।आशा है कि सरकार जल्द ही इस मुद्दे पर पहल कर फैसला करवाने का प्रयास करेगी।