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जेएमएम के गढ़ में लुईस मरांडी ने लगाई थी सेंध, अब बसंत सोरेन के सामने विरासत बचाने की चुनौती

झारखंड मुक्ति मोर्चा की परंपरागत सीट दुमका में इस बार कड़ी टक्कर है. साल 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार डॉ लुईस मरांडी ने हेमंत सोरेन को लगभग पांच हजार वोटों से हराकर यहां पहली बार बीजेपी का परचम लहराया था. इस हार का बदला अगले विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन ने लुईस मरांडी को तेरह हजार से ज्यादा वोटों से हरा कर लिया. उपचुनाव में एक बार फिर लुईस मरांडी किस्मत आजमा रही हैं. इस बार मुकाबला बसंत सोरेन से है, जिनके सामने राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौती है.

दुमका: झारखंड की उपराजधानी दुमका कई मायनों में खास है. भगवान शिव के धाम बासुकीनाथ और सोलहवीं शताब्दी में टेराकोटा आर्ट से बने 108 मंदिरों के गांव की वजह से इसकी पहचान दुनियाभर में है. यहां मयूराक्षी मसानजोर डैम है, जिसे कनाडा सरकार की मदद से 1952 मे बनाया गया था. यह डैम दुमका में होने के बावजूद इसका पूर्ण स्वामित्व पश्चिम बंगाल को दे दिया गया, जिसे लेकर विवाद आज भी जारी है.
दूमका संताल परगना की सबसे हॉट विधानसभा सीट है. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित यह सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की परंपरागत सीट मानी जाती है. दुमका विधानसभा सीट से जेएमएम के टिकट पर स्टीफन मरांडी पांच बार जीत दर्ज कर चुके हैं. साल 2009 में हेमंत सोरेन ने पहली बार यहां से जीत दर्ज की और राज्य के उपमुख्यमंत्री और फिर मुख्यमंत्री का पद संभाला. 2014 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन का मुकाबला बीजेपी की डॉ लुईस मरांडी से हुआ. लुईस मरांडी ने हेमंत सोरेन को लगभग 5 हजार वोटों से हराकर यहां पहली बार बीजेपी का परचम लहराया. इस हार का बदला जेएमएम ने 2019 के विधानसभा चुनाव में चुकाया. हेमंत सोरेन ने बीजेपी की लुईस मरांडी को 13,188 वोटों से हरा दिया.
झारखण्ड विधानसभा चुनाव 2019 में हेमंत सोरेन दुमका और बरहेट दो सीटों से चुनाव लड़ रहे थे. हेमंत सोरेन ने दोनों सीटों से जीत दर्ज की और इसके बाद दुमका सीट छोड़ दी. दुमका के अलावा बेरमो में भी उपचुनाव हो रहा है. बेरमो सीट कांग्रेस विधायक राजेंद्र सिंह के निधन की वजह से खाली हुई है.
दुमका के चुनावी मैदान में कुल बारह उम्मीदवार हैं, जिनमें आठ निर्दलीय हैं. इस उपचुनाव में बीजेपी की लुईस मरांडी एक बार फिर किस्मत अजमा रही हैं. लुईस मरांडी ने पीएचईडी तक पढ़ाई की है. वह झारखंड महिला आयोग सदस्य रह चुकी हैं. उन्होंने बीजेपी की महिला शाखा की कमान भी संभाली है. साल 2009 के विधानसभा चुनाव में लुईस हार गई थीं लेकिन 2014 में उन्होंने हेमंत सोरेन को हराकर रघुवर सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल किया था. लुईस मरांडी का सीधा मुकाबला जेएमएम के बसंत सोरेन से हैं. बसंत सोरेन दिशोम गुरु शिबू सोरेन के छोटे बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के छोटे भाई हैं. दसवीं पास बसंत सोरेन पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं. इससे पहले वे पार्टी की राजनीति संभालते रहे हैं. बसंत पर सोरेन परिवार की राजनीति को आगे बढ़ाने और विरासत को बचाने की चुनौती है.
समीकरण साल 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की आबादी तेरह लाख इक्कीस हजार छयानवे है. इसमें सबसे ज्यादा संख्या हिंदुओं की है. यहां हिंदू 79.06% , मुस्लिम 8.09% , ईसाई 6.54% और अन्य 6.31 हैं. आदिवासी बहुल जिले में 43.22% आबादी अनुसूचित जनजाति की है और अनुसूचित जाति के लोग 6.02% है. आदिवासी वोटों से इस सीट पर जीत-हार का फैसला होता है. यहां वोटरों की संख्या 2 लाख 50 हजार 720 है. जिसमें पुरुष वोटर 1 लाख 26 हजार 210 और महिला वोटर 1 लाख 24 हजार 510 है. 18 से 19 साल के 8093 मतदाता इस बार अपने मत का प्रयोग करेंगे.
झारखंड में सरकार बनने के तुरंत बाद कोरोना वायरस का संक्रमण फैल गया. महामारी के कारण सरकार विकास के बड़े फैसले नहीं ले सकी. इस दौरान नई सरकार खजाना खाली होने और आर्थिक मोर्चे पर केंद्र की ज्यादती का रोना रोती रही. जाहिर है एक ओर जेएमएम केंद्र के सौतेले व्यवहार को मुद्दा बना रही है वहीं बीजेपी मोदी सरकार की उपलब्धियों का बखान कर रही है. इन सब के बीच जल, जंगल और जमीन के स्थाई नारे के साथ स्थानीय सड़क, बिजली, पानी जैसे मुद्दे ही हावी हैं. लुईस मरांडी बाहरी बनाम स्थानीय का मुद्दा उठा रही हैं वह खुद को दुमका की बेटी और बसंत सोरेन को बाहरी करार दे रही हैं. वहीं बसंत सोरेन खुद आदिवासियों के हित में काम करने वाली सरकार का हवाला देकर जीत के प्रति आश्वसत हैं.
तीन नवंबर मंगलवार को झारखंड विधानसभा की दो सीटों के लिए मतदान होगा. यह दोनों सीटें सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है. गठबंधन में दुमका सीट जेएमएम के खाते में थी इसलिए हेमंत सोरेन के सीट छोड़ने के बाद उनके छोटे भाई बसंत सोरेन को उम्मीदवार बनाया गया है. वहीं बेरमो सीट कांग्रेस के खाते में थी, लिहाजा वहां दिवंगत विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह के बड़े बेटे जय मंगल सिंह अनूप सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है. इन दोनों सीटों पर जीत हार से सत्ता के जादुई समीकरण पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन सत्ता में रहते हुए सीट हारने का मतलब सरकार के प्रति जनता का भरोसा नहीं होने का प्रतीक होगा.