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जागतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तरों में पुनर्जागरण की आवश्यकता है

जागतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तरों में पुनर्जागरण की आवश्यकता है

 

*जड़ शक्ति का मानसिक शक्ति में और मानसिक शक्ति को आध्यात्मिक शक्ति में रूपान्तरण करना होगा*

 

जमशेदपुर-  आनन्दमार्ग प्रचारक संघ द्वारा आयोजित प्रथम संभागीय तीन दिवसीय सेमिनार गदरा आनंद मार्ग जागृति में आरंभ हुआ आज प्रथम दिन आनन्दमार्ग के आचार्य मंत्रचैतन्यानन्द अवधूत ने “जीवन के सभी क्षेत्रों में पुनर्जागरण का प्रयोजन” विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि रेनेसां अथवा पुनर्जागरण का वास्तविक अर्थ है जो मानवता सोई हुई थी आज उसे अन्धतमिस्रा से जगाना होगा और जीवन के, सभी क्षेत्रों में अस्तित्व के सभी स्तर पर कुछ नया करना होगा। समाज के समग्र प्रगति के लिए रेनेसां एक आन्दोलन है जिसके माध्यम से समाज के व्याप्त सभी प्रकार की बुराइयों, पार्थक्यों, भेद-भावों, शोषण, व्याधियों भावजड़ताओं या अन्धविश्वासों को समाप्त करना होगा। यह पुनर्जागरण जीवन के तीन गुरुत्वपूर्ण स्तरों में करना होगा- जागतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक ।

जीवन के जागतिक स्तर में वैज्ञानिक अविष्कार का व्यवहार नये – नये हथियारों( सुरक्षा के लिए)को तैयार करने के साथ-साथ कला, कल्याण एवं सेवा के लिए भी करना होगा । सामाजिक अग्रगति के लिए सामाजिक वैषम्य को दूर कर समानता लानी होगी , मनुष्य और पशु में पार्थक्य , मनुष्य और उ‌द्भिद में पार्थक्य पशु और उ‌द्भिद में पार्थक्य , दूर करने के लिए एक नीति अपनानी होगी कि सभी सृष्ट सत्ताओं को समान रूप से अपना जीवन प्रिय है और सबको जीने का जन्मगत अधिकार है। उच्चवर्ग-निम्नवर्ग जैसे सामाजिक वैषम्य का खात्मा करना होगा। वर्णगत तारतम्य, गोरा काला का वैषम्य भी दूर करना होगा, नारी-पुरुष का पार्थक्य मिटाना होगा। नारियाँ अनेक सामाजिक राजनैतिक अधिकार से वंचित हैं। पुरुषों की तरह उनके भी समान अधिकार है।

राजनैतिक, अर्थनैतिक एवं सांस्कृतिक जीवन में क्रमश: नीतिवादियों का शासन, न्यूनतम प्रयोजन एवं न्यूनतम क्रय क्षमता की गारन्टी तथा निःशुल्क शिक्षा की गारन्टी देनी होगी। जीवन के मानसिक स्तर में नाना प्रकार की व्याधियों जैसे – मानस- भौतिक व्याधि भावजड़ता (Dogma) को खत्म करना होगा, मानसिक व्याधि- कपटता त्रुटिपूर्ण चिन्तन को खत्म करके नव्यमानवतावाद की प्रतिष्ठा करनी होगी। जातिगत सम्प्रदायगत ऊँच-नीच भेद को लेकर दमन, उत्पीड़न को समाप्त करना होगा तथा हरेक प्रकार के शोषण के विरुद्ध आवाज बुलन्द करके शोषण को खत्म करना होगा। धर्म एवं साम्प्रदाय के अन्तर
को समझना होगा ।
जीवन के आध्यात्मिक स्तर में सबकुछ को आध्यात्मिकता की ओर चला देना होगा। आदर्श के क्षेत्र में ,शिक्षा के क्षेत्र में, भाषा के क्षेत्र में, कर्म के क्षेत्र में, एकता के क्षेत्र में अर्थात सर्वत्र ही आध्यात्मिकता को अंगीकार करना होगा। तभी मनुष्य ऋणात्मक प्रति संचर के पथ को छोड़कर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ेगा अर्थात वह जड़ शक्ति का मानसिक शक्ति में और मानसिक शक्ति को आध्यात्मिक शक्ति में रूपान्तरण कर सकेगा