झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

इस उलझन से सजता आँगन

इस उलझन से सजता आँगन
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जबतक जीवन तबतक उलझन।
इस उलझन से सजता आँगन।।
जबतक ——

महल अटारी या झोपड़ियाँ, तोंद कहीं तो सूखी अतड़ियाँ।
रोते देख रहा जब सबको, भटक रहा तब से मेरा मन।।
जबतक ——

अपने सपनों को बुनते हम, पूरन हो रस्ते चुनते हम।
कोशिश छोड़ी जिसने उसको, अपना मन भी लगता निर्जन।।
जबतक ——

नीति नियम पर जो चलते हैं, मिहनत करके वो पलते हैं।
इस पथ पर आजीवन चलकर, सुमन सफल होता है जीवन।।
जबतक —-

श्यामल सुमन