हमें गुलाम बनाना पसंद है
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सभी को अपना हक बुनियादी चाहिए।
अपने ढंग से जीने की आजादी चाहिए।।
घर में, परिवार में, समाज में,
हम आजादी की वकालत करते हैं,
मगर अन्दर ही अन्दर,
बच्चे, औरत या कमजोर लोगों को,
गुलाम भी बनाने की हिमाकत करते हैं।
क्योंकि अपनी आजादी और
दूसरों की गुलामी हमें भाती है,
इस मुद्दे पर भाषण देनेवालों के आँसू,
लगता कि पूरी तरह से बरसाती है।
कोई भी संस्था, संगठन या राजनैतिक दल,
जो जितना अधिक गुलाम बनाए,
अक्सर वो हो जाता है उतना ही सफल।
सोच में और हमारे दैनिक छद्म व्यवहार में,
प्रायः सबका मन ही मन एक अनुबंध है,
गुलाम बनना नहीं हमें गुलाम बनाना पसंद है।
कभी स्वेच्छा से तो कभी मजबूरी में,
कभी पास रहकर तो कभी दूरी में,
किसी के नेक काम से या भाषाई छल से,
कभी कभी जबरन डंडों के बल से,
हम दूसरों के प्रभाव में आते हैं
और बाहर बैठे इस तरह के शातिर,
हमें जैसे तैसे मानसिक गुलाम बनाते हैं।
आज हर देश का लगभग यही हाल है।
लेकिन आवाम को गुलामी के अंधे कुएं में,
साजिश के तहत लगातार ढकेले जाने पर,
सुमन का आपसे, अपने आप से,
सीधा और तीखा सवाल है।
क्योंकि हमारे दिल दूसरों की आजादी का सम्मान,
और अपनी आजादी के हक का खयाल है।
श्यामल सुमन
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