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फेक न्यूज का प्रसार रोकने में हर कोई दे अपना योगदान: अरिमर्दन

फेक न्यूज का प्रसार रोकने में हर कोई दे अपना योगदान: अरिमर्दन

पीआईबी-आरओबी, रांची और एफओबी, डाल्टनगंज के संयुक्त तत्वावधान में *कोविड-19: अफवाह नहीं, सही जानकारी फैलाएं* विषय पर वेबिनार का आयोजन

रांची। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पीआईबी-आरओबी रांची और एफओबी डालटनगंज के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को *कोविड-19: अफवाह नहीं, सही जानकारी फैलाएं* पर वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए पीआईबी-आरओबी रांची के अपर महानिदेशक अरिमर्दन सिंह ने कहा कि सूचना क्रांति के इस दौर में फैक्ट चेक और फेक न्यूज जैसे शब्द ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं। कोरोना महामारी के दौरान में फेक न्यूज़ से होने वाली हानि और उसके रोकने के उपायों पर हर व्यक्ति को चिंतित होना चाहिए।
श्री सिंह ने कहा कि यह अजीब विडंबना है कि चटपटी और सनसनीखेज, भ्रामक खबरें सोशल मीडिया पर ज्यादा तेजी से फैलती हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि फेक न्यूज़ और इससे होने वाले नुकसान के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जानकारी दी जाए। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया को अधिक जवाबदेह बनाने के लिए केंद्र सरकार की गाइडलाइन का पालन सोशल मीडिया मध्यस्थों को करना होगा। सोशल मीडिया में शेयर की जा रही खबरों को लेकर कोई शिकायत होने पर संबंधित माध्यम के शिकायत निवारण अधिकारी को बताया जा सकेगा और मैसेज के सोर्स की भी जानकारी मिल सकेगी।
समन्वय कर रहे क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी गौरव पुष्कर ने पॉवर प्वाईंट प्रेजेंटशन के माध्यम से बताया कि कैसे फेक न्यूज लोगों के मन में डर और भय का माहौल बना रहा है। फेक न्यूज के कारण निराधार और गलत खबरें लोगों तक पहुंच रही हैं जिससे समाज के साथ-साथ देश को भी नुकसान हो रहा है। श्री पुष्कर ने बताया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा स्थापित पीआईबी की फैक्टचेक युनिट सोशल मीडिया में चल रही तथ्यहीन खबरों का फैक्टचेक कर उसे अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर शेयर करती है जिसे पीआईबी के क्षेत्रीय एवं शाखा कार्यालय द्वारा भी प्रचारित प्रसारित किया जाता है। यदि किसी खबर पर संदेह व्यक्त किया जा रहा है तो उसको पीआईबी की फैक्टचेक युनिट को भेजा जा सकता है।
झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार चंदन मिश्र ने वेबिनार के दौरान कहा कि फेक न्यूज़ कोरोना से कम बड़ी महामारी नहीं है। यह फेक न्यूज़ का ही असर था कि कोरोना से बचाव और इसके इलाज के लिए सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड किए गए अजीबोगरीब और भ्रामक नुस्खे लोगों ने अपनाए और खुद को खतरे में डाला। फेक न्यूज़ से बचने का और इसे फैलने से रोकने का एक सरल उपाय यह है कि जैसे ही ऐसी खबर किसी के पास आए तो बिना जांचे परखे उसे फैलने से रोके। उन्होंने खुद का उदाहरण देते हुए कहा कि 5G के बारे में आई भ्रामक खबरों का उन्होंने इंटरनेट पर उपलब्ध तथ्यों के सहारे तुरंत खंडन कर फेक न्यूज़ को और अधिक प्रसारित होने से रोका। हर जागरूक नागरिक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह फेक न्यूज़ को काफी फैलने से पहले ही रोकने का प्रयास करे।
वेबिनार को संबोधित करते हुए सीएनबीसी आवाज बिज़नेस न्यूज़ चैनल मुंबई के पत्रकार एवं एंकर मनोज श्रीवास्तव ने कहा की फेक न्यूज़ से बचने के लिए हमें वापस पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों की ओर लौटना होगा। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि कल तक जो लोग पेड न्यूज़ को गंभीर समस्या मानते थे, अब उनकी सोच वैसी नहीं रही। इसी प्रकार अगर हम लोग फेक न्यूज़ के बारे में सचेत नहीं हुए तो भविष्य के लिए यह खतरे की घंटी है। ऐसा देखा गया है कि अनपढ़ लोग ही फेक न्यूज़ के चपेट में नहीं आते हैं बल्कि कई बार पढ़े लिखे लोग भी इसकी चपेट में आ जाते हैं समाचारों को लेकर जागरूकता यदि निचले स्तर तक पहुंचाई जाए तो फेक न्यूज़ फैलने से पहले ही खत्म हो जाएगा।
एमिटी यूनिवर्सिटी, झारखंड के मास कम्युनिकेशन के विभागाध्यक्ष सुधीर कुमार ने परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कोरोना महामारी के दौर में भ्रामक सूचनाओं की महामारी का दौर भी चल रहा है। आजकल देश की एक बड़ी जनसंख्या के पास स्मार्टफोन है जिसके द्वारा हर कोई सिटीजन जर्नलिस्ट बना हुआ है। जिस प्रकार सिटीजन डॉक्टर सही नहीं हो सकता, उसी प्रकार सबका सिटीजन जर्नलिस्ट बन जाना भी चिंता का विषय है। इसी के कारण बिना फैक्ट के खबरें ज्यादा संख्या में शेयर हो जाती हैं। समाचार जगत में विश्वसनीयता का अहम रोल है। यह भी देखने में आया है कि कई बार कुछ प्रायोजित संदेश फैलाया जाता है, जिनके बारे में हमें सचेत रहने की आवश्यकता है। फोटो या विडियो की सत्यता परखने के लिए हमारे पर ऑनलाइन कई ऐसे टूल्स मौजूद हैं जिनकी मदद से उनकी सच्चाई का पता लगाया जा सकता है।
झारखंड के युवा पत्रकार और द फॉलोअप वेब चैनल के सह संस्थापक सन्नी शरद ने कहा कि न्यूज़ पोर्टल या न्यूज़ चैनल का लोगों द्वारा पसंद किये जाने का आधार उसकी विश्वसनीयता है। 100 प्रतिशत सही खबरों के बीच में अगर एक अपुष्ट खबर चल गई तो वह उस न्यूज पोर्टल या चैनल की पहचान को शक के दायरे में ले आती है। आज जरूरत इस बात की है कि करोना महामारी से जुड़ी खबरों को प्रसारित करने से पहले उसे कई दफे जांचा-परखा जाए। उन्होंने कहा कि फेक न्यूज़ को शुरू होते ही दबा देना सबसे कारगर उपाय है। उन्होंने धनबाद जिले की एक खबर का उदाहरण देते हुए कहा कि कोरोना वैक्सीन के बारे में फैलाई जाने वाली एक गलत खबर को वहां के डीसी ने आधे घंटे के अंदर खंडन कर आगे फैलने से रोक दिया।
पलामू के जनसंपर्क अधिकारी विजय कुमार ने कहां कि एक जमाना था जब घर घर में आकाशवाणी की पहुंच थी। आज वह दौर है जब घर घर में स्मार्टफोन के माध्यम से सोशल मीडिया ने अपनी जगह बना ली है। अतः हमें खबरों को शेयर करने से पहले बहुत सचेत रहने की आवश्यकता है।
वेबिनार के अंत में प्रश्नकाल के दौरान रानी सिंह ने सुझाव दिया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अगर कोई ऐसा उपाय निकाले कि प्रसारित फेक न्यूज़ को हर जगह से डिलीट किया जा सके तो बहुत अच्छा होगा। साथ ही फेक न्यूज़ फैलाने वालों के लिए सजा का प्रावधान भी हो।
वेबिनार का यु-ट्यूब पर भी लाइव प्रसारण किया गया, जिसे सैकड़ों लोगों ने लाइव देखा। वेबिनार में विशेषज्ञों के अलावा शोधार्थी, छात्र, पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारियों तथा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया। गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकार एवं सदस्य, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर तथा संपादक और पत्रकार भी शामिल हुए।