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एमएसीपी के लिए छुट्टी लेकर शिक्षकों से धरना-प्रदर्शन में शामिल होने की अपील

एमएसीपी के लिए छुट्टी लेकर शिक्षकों से धरना-प्रदर्शन में शामिल होने की अपील

रांची- झारखंड प्रदेश संयुक्त शिक्षक मोर्चा की बैठक संयोजक अमीन अहमद की अध्यक्षता में 18 दिसंबर को रांची में हुई इसमें अमरनाथ झा, आशुतोष कुमार, विजय बहादुर सिंह, अरुण कुमार दास, धर्मदेव प्रसाद सहित कई शिक्षक प्रतिनिधि उपस्थित थे।
बैठक में एमएसीपी संघर्ष मोर्चा के आहवान पर 19 दिसंबर को पूर्वाहन 11 से विधानसभा के समक्ष आहूत एक दिवसीय सांकेतिक धरना को लेकर चर्चा हुई। शिक्षक हित में राज्य के तमाम प्राथमिक संवर्ग के शिक्षकों को छुट्टी लेकर धरना प्रदर्शन में शामिल होकर सफल बनाने का आह्ववान किया है।
इसके लिए संयुक्त मोर्चा ने रांची, रामगढ़, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, लोहरदगा, गुमला, गोड्डा, धनबाद, बोकारो, पाकुड़, गिरिडीह आदि जिलों के अध्यक्ष और महामंत्री से दूरभाष पर संपर्क कर कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी दी। अधिक से अधिक संख्या में धरना-प्रदर्शन में शामिल होने की अपील  किया
मोर्चा ने कहा कि राज्य के सभी कर्मचारियों को उनकी सेवा शर्तों के अनुरूप  नियमित प्रोन्नति के साथ-साथ 10, 20 एवं 30 वर्षों की सेवा अवधि पूर्ण होने पर एमएसीपी का लाभ दिया जाता है हालांकि राज्य के शिक्षकों को ना तो नियमित प्रोन्नति दी जाती है और ना ही एमएसीपी का लाभ दिया जाता है।
इसके फलस्वरूप शिक्षक बिना कोई वित्तीय उन्नयन के अपने बेसिक पद से ही  सेवानिवृत्त होते चले जा रहे हैं, जो निश्चित रूप से विभाग अथवा सरकार की शिक्षकों के प्रति उदासीन रवैया की ओर  इंगित करता है। शिक्षकों से भेदभावपूर्ण नीति को दर्शाता है। पूर्ववर्ती राज्य बिहार अपनी विसंगतियों को सुधारते हुए सभी कोटि के शिक्षकों को अपने कर्मचारियों के समान एमएसीपी का लाभ दे रही है
इस संदर्भ में झारखंड के मुख्यमंत्री से लेकर तमाम पदाधिकारियों को मोर्चा वार्ता एवं ज्ञापन देकर कई बार शिक्षकों को एमएसीपी का लाभ देने की मांग करते आ रहा है। बावजूद विभाग की मंशा एवं नियत साफ अथवा स्पष्ट दिखाई नहीं दे रही है
मोर्चा के प्रयास से विधायक के माध्यम से विधानसभा के प्रश्न एवं ध्यानाकर्षण समिति में वाद भी चला। इसके निर्देशों को भी विभाग द्वारा अप्रसांगिक हो चुके  नियमों का हवाला देकर मामले को उलझाने का कार्य किया जा रहा है। इसके कारण शिक्षकों को विद्यालय में रहने के बजाये पर सड़क पर धरना-प्रदर्शन को  मजबूर होना पड़ रहा है। इसका प्रतिकूल प्रभाव शिक्षा व्यवस्था पर पड़ रहा है।