झारखण्ड वाणी

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द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त होने के बावजूद मैथिली को क्षेत्रीय भाषा की सूचि में नहीं डाला गया

रांची राज्य सरकार द्वारा राजकीय झारखंड गजट (असाधारण अंक) 10 दिसंबर 2018 के तहत झारखंड राज्य के विशिष्ट क्षेत्रों में कतिपय राजकीय प्रयोजनार्थ उर्दू, संथाली, बंगला, मुंडारी, हो, खड़िया, कुडुक (उड़ाव), कुरमाली, खोरठा, नागपुरी, पंच पड़गानिया तथा उड़िया के साथ मगही, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका एवं भूमिज भाषा को द्वितीय राज्य भाषा की मान्यता विषयक अधिसूचना जारी की गई है। इधर कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग की अधिसूचना संख्या 8630 दिनांक 20 दिसंबर 2021 द्वारा पूर्व अधिसूचित द्वितीय राज्य भाषाओं की सूची से झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग द्वारा मैट्रिक तथा इंटरमीडिएट जिला/राज्य स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा हेतु वर्णित भाषाओं की सूची में मैथिली को स्थान नहीं दिया गया है।
क्षेत्रीय भाषा के विषय को तैयार करने के उद्देश्य से जिलावार क्षेत्रीय भाषा को चिन्हित कर उसकी सूचि तैयार (संशोधित ) की गयी। इस संशोधित भाषा के सूचि में उर्दू, संथाली, बंगला, हो, खड़िया, कुडुक, खोरठा, नागपुरी, उड़िया, पंच परगनिया, कुरमाली और मुंडारी भाषा को शामिल किया गया।
वर्तमान में झारखण्ड में कुल 17 भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है जिसमे उपरोक्त भाषा के अलावा मैथिली, मगही, भोजपुरी, अंगिका और भूमिज शामिल है, लेकिन अन्य भाषा की तरह द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त होने के बावजूद मैथिली को क्षेत्रीय भाषा की सूचि में नहीं डाला गया। सरकार के इस कदम से सम्पूर्ण झारखण्ड राज्य में रह रहे 20 लाख से भी ज्यादा मैथिली भाषा भाषी लोगों में असंतोष का माहौल है।
ज्ञातव्य हो कि झारखंड में मैथिली को ना सिर्फ द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है बल्कि प्रदेश के सिद्धू कानू मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका एवं कोल्हान विश्वविद्यालय चाईबासा में मैथिली की पढ़ाई भी होती है। इसके अलावा राज्य के +2 विद्यालयों में मैथिली शिक्षकों के 59 पद स्वीकृत है। मध्यमा की परीक्षा में भी यह शामिल है। महान भाषाविद जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने मान्य भाषिक सर्वेक्षण में मैथिली भाषी क्षेत्र में झारखंड राज्य के गोड्डा, देवघर, दुमका और साहिबगंज आदि जिलों को सम्मिलित किये थे | इसके अतिरिक्त रांची, बोकारो, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां आदि जैसे राज्य की महत्वपूर्ण जिलों में लाखों की संख्या में मैथिली भाषा भाषी सदियों से स्थाई रूप से निवास करते आ रहे हैं और झारखण्ड के विकास में अपना सम्पूर्ण योगदान दे रहे हैं। यह भी एक तथ्य है कि भारतीय संविधान के अष्टम अनुसूची में मैथिली भाषा सम्मिलित हैं |
झारखण्ड सरकार का इस त्रुटिपूर्ण निर्णय के खिलाफ ध्यान आकर्षित कराने के लिए झारखंड के विभिन्न मैथिल सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं ने अपने अपने जिले में डीसी के माध्यम से  मुख्यमंत्री को और अपने-अपने जिले के जन -प्रतिनिधियों को ज्ञापन देकर मैथिली भाषा को क्षेत्रीय भाषा की सूचि में शामिल करने का अनुरोध किया।
इसका कुछ खास असर नहीं होता देख झारखंड के सभी 24 जिले के प्रमुख मैथिल सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं/संगठन ने विभिन्न बैठक, वेबिनार, संगोष्ठी, कार्यशाला आदि के माध्यम से अपनी एकजुटता का परिचय देते हुए आपसी सहमति एवं सहयोग से एक संयुक्त समिति “मैथिली भाषा संघर्ष समिति, झारखंड” का निर्माण किया जिसके संयोजक राँची निवासी अवकाश प्राप्त शिक्षक  अमर नाथ झा को बनाया गया और अन्य संस्था के पदाधिकारियों को विभिन्न क्षेत्र का प्रभारी बनाया गया है।
मैथिली भाषा संघर्ष समिति अपने गठन के तुरंत बाद झारखण्ड में मैथिली भाषा को उसका उचित स्थान एवं सम्मान दिलाने के उद्देश्य की पूर्ति में जुट गया है। अपने सहयोगी संस्था के सहयोग से एक रणनीति के तहत समिति ने राज्य के राज्यपाल, मुख्यमंत्री एवं सभी विधायकों को तथ्यों की जानकारी के साथ ज्ञापन देने का कार्य कर रहा है।
अतः राज्य के शान्तिप्रिय मैथिली भाषा – भाषी का यह अनुरोध यदि झारखण्ड सरकार नहीं मानती है तो अपनी भाषाई अस्मिता को बचाने के लिए राज्य भर के मैथिली भाषा – भाषी धरना – प्रदर्शन, रचनात्मक आंदोलन , घेराव आदि करने के लिए बाध्य होंगे। इसके आलावा भाषाई संवैधानिक अधिकार के लिए राज्य के मैथिली भाषा – भाषी न्यायालय की शरण में भी जाएंगे।
इस अवसर पर मैथिली भाषा संघर्ष समिति झारखंड के मीडिया प्रभारी अजय झा ,अरूण झा , प्रेम चन्द्र झा , गंगा यादव ,आर.सी.चौधरी , बाबू लाल झा , विनोदानंद झा , कुन्दन कुमार सिंह , अवधेश ठाकुर , अक्षय कुमार सिंह , आनन्द कुमार झा ,मनोहर चौधरी, प्रदीप कुमार , सतीश चन्द्र मिश्र ,योग नारायण झा , किशोर झा’मालवीय’ , कन्हैया झा , रंजीत कुमार ठाकुर एवं कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।