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ब्रह्म को पाने के लिए जीव (अणु) को साधना करनी होगी, मंत्र, जाप करना होगा, अपने अस्तित्व के भीतर ही उन्हें खोजना होगा

ब्रह्म को पाने के लिए जीव (अणु) को साधना करनी होगी, मंत्र, जाप करना होगा, अपने अस्तित्व के भीतर ही उन्हें खोजना होगा

*भूमा (परमात्मा) यदि महासमुद्र है तो अणु (जीव ) बुलबुले की भाँति है। भूमा (परमात्मा) पूर्ण है, जीव अपूर्ण हैं*

जमशेदपुर – आज आनन्द मार्ग प्रचारक संघ द्वारा आयोजित प्रथम संभागीय सेमिनार 2023 के दूसरे दिन शनिवार को गदरा स्थित आनन्दमार्ग जागृति के प्रांगण में सैकड़ों साधकों को संबोधित करते हुए वरिष्ट आचार्य मन्त्रचैतन्यानन्द अवधूत ने *”अणु और भूमा”* विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें सबसे पहले ब्रह्मभाव की महिमा या वृहता एवं जीवभाव की क्षुद्रता को समझना होगा तथा साथ ही अणु (microcosm) तथा भूमा (Macrocosm) में मुख्य अन्तर को भी समझना होगा।

ब्रह्म भाव में भूमा के दो भाव है उसका विषय भाव – ‘भूमा मन’ तथा विषयी भाव -“भूमा चैतन्य” । उसी तरह जीव भाव में अणु के भी दो भाव है उसका विषय भाव -“अणुमन” एवं विषयी भाव – “जीवात्मा”। भूमा मन प्रकृति के प्रभाव से भूमा चैतन्य का ही रूपान्तरित रूप है,
तो अणुमन का निर्माण सृष्टि चक्र के प्रतिसंचर धारा में पदार्थ के चूर्ण विचूर्ण होने से चित्त में रूपान्तरित होने से होता है। भूमा मन सप्तलोकात्मक है तो अणु मन पंचकोशात्मिका है। भूमा मन की प्रचेष्टा या लक्ष्य एकमुखी है और विकास या कार्य बहुमुखी है जबकि अणु मन की प्रचेष्टा या लक्ष्य बहुमुखी है एवं विकास या कार्य एकमुखी है। भूमा अजर है, अजनक है, अकारण है, मायाधीश है जबकि अणु का शरीर रोगग्रस्त या जराग्रस्त होता है वह जनक है सकारण है, मायाधीन है। परमात्मा मात्र साक्षी है जबकि जीवात्मा कर्माकर्म फल का फलभोग या भक्षण करता है। ये दोनों एक ही पेड़ के दो डाल पर बैठे पक्षी है। भूमा को स्थूल इन्द्रियाँ नहीं है केवल मानस इन्द्रिय है, जबकि अणु को स्थूल इन्द्रियाँ प्राप्त हैं। भूमा सबका नियंत्रक(ईश) कालाधीश है, अणु सबका नियंत्रक नहीं है, वह कालाधीन है। भूमा आपेक्षिकता में आबद्ध नहीं है, अणु आपेक्षिकता (देश, काल, पात्र) की सीमारेखा में आबद्ध है। भूमा सर्वसाक्षी, सर्व नियन्ता, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापक है जबकि अणु ऐसा नहीं है। भूमा अखण्ड असीम अनन्त सत्ता है अणु खण्ड, सीमित, सान्त सत्ता है। भूमा के लिए सबकुछ (जगत) आन्तरिक है। अणु के लिए सृष्ट जगत ब्रह्म रूप में प्रतीयमान होता है। सहस्रार चक में शिव का स्थान है जो आज्ञा चक्र से दस अंगुल ऊपर स्थित है। जीव मानस और जीवात्मा का निवास आज्ञा चक्र में है। आज्ञाचक्र और सहस्रार चक्र के बीच का स्थान भूमा मन से भरा है। भूमा यदि महासमुद्र है तो अणु (जीव ) बुलबुले की भाँति है। भूमा (परमात्मा) पूर्ण है, जीव अपूर्ण (Imperfect) हैं। ब्रह्म को पाने के लिए जीव (अणु) को साधना करनी होगी, मंत्र, जाप करना होगा, अपने अस्तित्व के भीतर ही उन्हें खोजना होगा बाहर नहीं। उन्हीं की भावना लेनी होगी, उनका ही चिन्तन करना होगा क्योंकि उनकी कृपा से ही जीवन्मुक्त हुआ जा सकता है। उनके यन्त्र के रूप में उनकी इच्छाओं को पूर्ण करना होगा। साधना के सर्वश्रेष्ठ मार्ग का अवलम्बन करना होगा ।