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बनिया (वैश्य समाज) का आराध्य देवी माँ लक्ष्मी और देव श्री विष्णु और फिर देव श्री गणेश

बनिया (वैश्य समाज) का आराध्य देवी माँ लक्ष्मी और देव श्री विष्णु और फिर देव श्री गणेश

लक्ष्मी की कृपा से सबसे ज्यादा धन संपदा बनियों (वैश्य समाज) को प्राप्त हुई। इसका कारण यह रहा कि हमारे पूर्वजों ने माँ लक्ष्मी की घोर पूजा की उनसे अनुनय विनती उपरांत यह वरदान माँ लक्ष्मी ने बनियों को दी कि इस धरती पर सबसे ज्यादा धन संपदा बनियों के पास संरक्षित संचित रहेगी। और साथ में माँ लक्ष्मी ने अपना नाम वरलक्ष्मी का पहला अक्षर ‘व’ भी बनियों को दिया जो आगे चलकर वैश्य कहलाये।
यहाँ तक तो ठीक था बनियों के पास धरती का सारी संपदा का हक प्राप्त हो गया। इसको देख सभी राक्षस, राक्षसी प्रवृति के लोग दुख से ग्रसित हो बनियों को लुटना शुरू कर दिये। इसके बाद फिर से हमारे पूर्वजों ने माँ लक्ष्मी से गुहार लगाई कि हे माँ इन सब दुष्टों से मेरी रक्षा करो। यह देख माँ लक्ष्मी ने सभी देवताओं से परामर्श कर श्री गणेश को अपना दत्तक पुत्र बना के हमेशा के लिए साथ रखने रखीं और तब से बनियों का आराध्य देव के रूप में श्री गणेश जी भी पूजे जाने लगें। और श्री गणेश जी तब से हमारी सब तरह से रक्षा करते हैं और हम अपनी धन संपदा का सदुपयोग कैसे करें समाज हित में खर्च कैसे करें इसका ज्ञान हमें देते रहते हैं। आज भी वैश्य समाज ही सबसे ज्यादा इस धरती पर पूरे संसार में दान पूण्य का काम करता है । देश की प्रगति में वैश्य समाज की भूमिका अग्रणी है। देश की अर्थ व्यवस्था में वैश्य समाज का 80 फीसदी योगदान है।
माँ लक्ष्मी और श्री गणेश की हम सब पर कृपा हमेशा बनी रहें इसके लिए हम सब दिवाली के रोज माँ लक्ष्मी -श्री गणेश की पूजा हम अपने घर मंदिर में जरुर करते हैं। कालांतर में माँ लक्ष्मी और बेटी श्री गणेश सभी सनातनियों के लिए आराध्य हो गई। और हर घर मंदिर में पूजे जाने लगीं।
अधिकतर घरों में बच्चे यह दो प्रश्न अवश्य पूछते हैं जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है? राम और सीता की पूजा क्यों नही?
दूसरा यह कि दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं?

इन प्रश्नों का उत्तर अधिकांशतः बच्चों को नहीं मिल पाता और जो मिलता है उससे बच्चे संतुष्ट नहीं हो पाते।आज की शब्दावली के अनुसार कुछ ‘लिबरर्ल्स लोग’ युवाओं और बच्चों के मस्तिष्क में यह प्रश्न डाल रहें हैं कि लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या है, जबकि दीपावली का उत्सव राम से जुड़ा हुआ है। कुल मिलाकर वह बच्चों का ब्रेनवॉश कर रहे हैं कि सनातन धर्म और सनातन त्यौहारों का आपस में कोई तारतम्य नहीं है।सनातन धर्म बेकार है।आप अपने बच्चों को इन प्रश्नों के सही उत्तर बतायें।

दीपावली का उत्सव दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मीजी का पूजन होता है। भगवान राम भी त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने घर घर दीपमाला जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है।अत: इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपों से जुड़ा है।

लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है
और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है?

लक्ष्मी जी सागरमन्थन में मिलीं, भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया और उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया। लक्ष्मी जी ने धन बाँटने के लिए कुबेर को अपने साथ रखा। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते ही नहीं थे।वे खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी खिन्न हो गईं, उनकी सन्तानों को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने कहा कि तुम कुबेर के स्थान पर किसी अन्य को धन बाँटने का काम सौंप दो। माँ लक्ष्मी बोली कि यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा।
तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को भी कुबेर के साथ बैठा दिया। गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान। वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊँगा , उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी।अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न, रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे।कुबेर भंडारी देखते रह गए, गणेश जी कुबेर के भंडार का द्वार खोलने वाले बन गए। गणेश जी की भक्तों के प्रति ममता कृपा देख माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें।

दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में।इसलिए वे अपने सँग ले आती हैं अपने मानस पुत्र गणेश जी को। इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।

यह कैसी विडंबना है कि देश और हिंदुओ के सबसे बड़े त्यौहार का पाठ्यक्रम में कोई विस्तृत वर्णन नहीं है और जो वर्णन है वह अधूरा है।इस लेख को पढ़ कर स्वयं भी लाभान्वित हों और अपनी अगली पीढ़ी को भी बतायें। दूसरों के साथ साझा करना भी ना भूलें

वैश्य दर्पण द्वारा प्रसारित :- प्रमोद कुमार गुप्ता
अध्यक्ष – वैश्य समन्वय समिति (भारत)