अश्क बनकर बह गए
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भाव लगभग जिन्दगी के, गीत मेरे कह गए
अनकहे जो रह गए, वो अश्क बनकर बह गए
अपनी चाहत का महल, हर आदमी का ख्वाब है
उस महल की ये हकीकत, वक्त के सँग ढह गए
दिन बुलंदी के अगर तो, लोग खुश दिखते यहाँ
कीमती वो आदमी जो, हँस के गम को सह गए
वक्त के सँग हर कदम जो, हैं बढ़ाते वक्त पर
बढ़ते हैं वे लोग अक्सर, शेष पीछे रह गए
यूँ लगे कि प्राण छूटा, दूर प्रियतम जा रहे
तब गलतफहमी सुमन को, यह गए कि वह गए
श्यामल सुमन
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