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अन्तरराष्ट्रीय मैथिली परिषद की चौंसठवीं वेवसंगोष्ठी मिथिला के भूगोल पर हुई

आज अन्तरराष्ट्रीय मैथिली परिषद की चौंसठवीं वेवसंगोष्ठी मिथिला के भूगोल पर हुई और सभा के अंत में मैथिली के प्रख्यात साहित्यकार श्याम दरिहरे,पटना एवं मिथिला वाणिज्य परिषद के अध्यक्ष विनायक झा, दिल्ली के निधन होने पर शोक में मौन रखा गया।
डा धनाकर ठाकुर ने कहा कि मिथिला के उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा नदी, पूरब में कोशी (200साल में 120 किलोमीटर पश्चिम चली गई है इसलिए महानन्दा), पश्चिम में गंडक जो नेपाल में नारायणी कहलाती है, पौराणिक सदानीरा घाघरा-सरयू के बीच थी या गंडक से कुछ पूरब कहना कठिन है।
डाक्टर ठाकुर ने कहा कि उनकी मान्यता है कि
मिथिला एक विशिष्ट भू-भौतिक क्षेत्र है जहां भूकम्प आया है तो उत्तराखण्ड या पूर्वोत्तर भारत में नहीं आता है। आज के दिन में मिथिला के उत्तर में नेपाली, पूरब में बंगला दक्षिण में मगही, पश्चिम में भोजपुरी बोलने वाले हैं।
यह मिथिला 1816 ई में सुगौली सन्धि में भारत और नेपाल में बंट गया।1947 में कुछ पाकिस्तान या आज के बंगलादेश में चला गया।
भारतीय मिथिला बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बंटा हुआ है।
गंगा के दक्षिण में अंग है पर भाषाई मैथिली देवघर तक बोली जाती है जिसे अंगिका या दक्षिणी मैथिली भी कहते हैं इसलिए इसे भारतीय मिथिला राज्य में रखने की मांग है।
नेपाली मिथिला राज्य अलग नेपाल देश में प्रांत 2-3 को मिला बनाया जाए। बंगलादेश में रजौडा को विद्यापति सांस्कृतिक केंद्र में बदला जाए।
पश्चिम बंगाल के मालदा दिनाजपुर जिले को भी मिथिला राज्य में मिलाया जाए।
सभा में दरभंगा के राजीव कर्ण, पटना पुस्तक मेला के संस्थापक एन के झा, नोएडा के ब्रज किशोर झा, रांची के सनत कुमार झा एवं शरदिंदु चौधरी, भागलपुर के डा मयंक वत्स, जमशेदपुर के पंकज झा, राजीव कुमार, कमलकांतझा, विनय कुमार झा आदि ने भी अपने विचार रखे।