अन्तरराष्ट्रीय मैथिली परिषद की 66 वीं वेवगोष्ठी मिथिलाक्षर विषय पर हुई।डा धनाकर ठाकुर ने बताया कि नरकटियागंज के पास सहोदरा में मिले दसवीं शताब्दी के शिलालेख से प्रमाणित हो चुका है कि मिथिलाक्षर ही हमारे मैथिली भाषा की लिपि है और हम सबों को यह सीखना चाहिए।
सभी वर्गों के छात्र को 20% प्रदर्शनों का उत्तर मिथिलाक्षर में लिखने पर मिलना चाहिए।हलन्त का प्रयोग कर संयुक्ताक्षर लिखना आसान बनाना चाहिए।पहली से अनिवार्य कर दशवें साल से केवल मिथिलाक्षर में उत्तर हो।साहित्य अकादमी पुरस्कार भी केवल मिथिलाक्षर पुस्तकों पर मिले।
विधुकांत मिश्र, प्रयागराज ने कहा कि मिथिला कर्सर हमारी जड़ है। मकानों के नामपट्ट मिथिलाक्षर ओर देवनागरी /रोमन में हो।
राजीव कुमार, दरभंगा ने कहा कि मिथिलाक्षर की शैली में विविधता है।पंकज झा, जमशेदपुर ने कहा कि वहां करीब पांच सौ को मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान ने प्रमाणपत्र दिया था। अध्यक्ष डा कमल कांत झा, जयनगर ने कहा कि विविध शैली हर लिपि में होती है।कोई तो पहले सीखेंं। बंगला भी इसी लिपि से निकली है इसलिए उससे अंतर कम रहे तो पुस्तक प्रकाशन में सुविधा होगी। बैठक में प्रमोद झा, विनय झा, राजीव झा, हेमंत झा, जमशेदपुर,
पटना पुस्तक मेला के संस्थापक नरेन्द्र कुमार झा आदि ने भी भाग लिया।
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