आयु-भर तो जीने दो।
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एक मजदूर और कृषक की तरह,
एक बागबां और अभिभावक की तरह,
एक विद्यार्थी और शिक्षक की तरह,
हमने जिन्दगी को बहुत शिद्दत से पढ़ा है,
समय और सामाजिक जरूरत के हिसाब से,
खुद को और अपने परिवार को गढ़ा है,
ताकि जन जन में, परिजन में कायम रहे
आपसी प्रेम का अजस्त्र स्रोत हमेशा।
हम जीना चाहते हैं अपनी आयु तक,
उसी प्रेम पूर्ण वातावरण में।
लेकिन कभी कभी ऐसा क्यों लगता है कि
हमारा सब कुछ बिखर सा गया,
वो सारे सपने ध्वस्त हो गए,
जिनको हासिल के लिए जीवन भर,
मशक्कत करने में तल्लीन रहे हम।
आपसी प्रेम को बचाने के लिए,
एक सुन्दर बगीचा सजाने के लिए,
आज भी खुशी खुशी गमों का जहर पीने दो,
कम से कम हमें अपनी आयु-भर तो जीने दो।
श्यामल सुमन
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