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आचार्य मेरु भूषण समाधि की ओर प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री १०८ मेरुभूषण महाराज तीर्थराज जैनतीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी में संलेखना समाधि के अंतिम चरण की ओर अग्रसर हैं

आचार्य मेरु भूषण समाधि की ओर प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री १०८ मेरुभूषण महाराज तीर्थराज जैनतीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी में संलेखना समाधि के अंतिम चरण की ओर अग्रसर हैं जैनागम की विधि के अनुसार आचार्य श्री दिगंबर मुनि मुद्रा में ९ फरवरी को सभी से क्षमा तथा सभी को क्षमा करते हुए चारों प्रकार के आहार का त्याग कर यम संलेखना धारण करेंगे। इससे पहले मुनि श्री द्वारा 20 जनवरी 2023 से तीनों प्रकार के आहार का त्याग कर दिया है, और 3 फरवरी 2023 से सभी प्रकार का परिग्रह त्याग आचार्य पद व पट्ट त्याग कर दिए हैं।

मूल रूप से आगरा के निवासी जगदीश प्रसाद जैन ने आज से करीब 22 वर्षों पहले मुनि जैन मुनि दीक्षा ग्रहण कर मेरु भूषण नाम धारण किया था। आपको दिगम्बरत्व मुनि दीक्षा 28 अप्रैल 2002 के दिन आचार्य श्री विद्या भूषण सन्मति सागर महाराज के द्वारा अतिशय क्षेत्र बड़ेगांव दिल्ली में प्रदान की गयी।आचार्य पद 10 दिसंबर 2004 में आचार्य सन्मति सागर द्वारा प्रदान किया गया।आचार्य पद की दीक्षा श्रवण बेलगोला में आचार्य चारू कीर्ति महाराज के सानिध्य में सम्पन्न हुई।आपने दीक्षा के उपरांत पूरे भारत में विभिन्न तीर्थ क्षेत्रों और प्रमुख सिद्ध क्षेत्र सोनागिरि, गिरनार जी , श्रवनवेलगोला आदि का पद भ्रमण किया।विगत २२ वर्षों में आपने जैनागम के अनुसार निरंतर तप त्याग साधना का पालन किया और अनेकों शास्त्रों और पुस्तकों की रचना की। अपने मुनि जीवन काल में आचार्य श्री ने श्री गिरनार आंदोलन और पशु बलि प्रथा विरोध आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।

जैन धर्म सत्य और अहिंसा के लिए जाना जाता है और जैन धर्म के साधु अपनी तपस्या के लिए प्रसिद्ध है, चाहे गर्मी हो अथवा सर्दी हो निर्वस्त्र रहकर भी जैन साधु अपनी प्रतिदिन की क्रियाएं करते हैं पैरों में जूते चप्पल पहने बिना मीलों का रास्ता नंगे पैर ही सफर करते हैं। जैनागम के अनुसार जैन मुनियों को जीवन पर्यंत कठिन तप साधना करनी होती है। इसी श्रृंखला में जैन धर्म के एक विशेष साधना सल्लेखना या संथारा कहलाती है जिसके अंतर्गत जब मुनियों को जीवन के काल चक्र के पूरे होने का आभास होता है तो मोक्ष प्राप्ति हेतु, जैन मुनि यम संलेखना धारण करते हुए स्वत्तः ही अपने प्राण त्याग देते हैं। क्षपक मुनिराज मेरु भूषण जी इसी संलेखना क्रिया के अंतिम चरण की और बढ़ रहे हैं।
मुनि श्री के संघ संचालक श्री रमेश चंद जैन ने इस खबर की पुष्टि करते हुए, सभी श्रदालुओं से धर्म लाभ लेने का आग्रह किया है। मुनि श्री अभी आचार्य सुमति सागर त्यागी वृति आश्रम श्री सम्मेद शिखर जी में विराजमान हैं।