झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

यूरिया की किल्लत से किसान परेशान

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन से किसान पहले ही रवि फसल की मार झेल चुके हैं. किसानों को इस बार धान की खेती में थोड़ी आस जगी थी कि धान की फसल अच्छी होगी. मौसम ने भी भरपूर साथ दिया, लेकिन समय पर खाद नहीं मिलने से किसानों की मेहनत पर पूरी तरह पानी फिरता दिख रहा है.

रांची: राज्य में यूरिया खाद की किल्लत से एक बार फिर किसानों की परेशानियां बढ़ गई है. किसान अपने खेतों में धान की बिचड़ा लगा चुके हैं, लेकिन समय से उन्हें खाद नहीं मिलने के कारण धान की खेती को बर्बाद होने का डर सता रहा है
वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन से किसान पहले ही रवि फसल की मार झेल चुके हैं. किसानों को इस बार धान की खेती में थोड़ी आस जगी थी कि धान की फसल अच्छी होगी. मौसम ने भी भरपूर साथ दिया, लेकिन समय पर खाद नहीं मिलने से किसानों की मेहनत पर पूरी तरह पानी फिरता दिख रहा है. धान की खेती राज्य की प्रमुख खाद्यान्न फसल है. इसकी खेती मौसम पर निर्भर होती है. पिछले दो-तीन सालों के बाद इस बार वातानुकूल मौसम के साथ मॉनसून भी सही समय पर आया और अच्छी बारिश होने से किसानों में आस भी जगी कि फसल अच्छा होगा, लेकिन सरकारी व्यवस्था इन किसानों के बीच रोड़ा बन रही राज्य के किसान समय पर धान की रोपाई के साथ खेती से खरपतवार भी निकाल रहे हैं. इस वक्त धान की खेती में खाद बेहद जरूरी होता है. अगर समय पर खाद नहीं मिला तो फसल के पैदावार में बड़ी गिरावट आ जाएगी. क्योंकि इसके ऊपर प्रभाव भी पड़ेगा. किसानों का कहना है कि वे किसी तरह कर्ज लेकर धान की खेती किए हैं, लेकिन अगर समय से यूरिया नहीं मिला तो एक बार फिर भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है. उनकी मांग है कि जल्द से जल्द उन्हें पर्याप्त मात्रा में यूरिया पहुंचाया जाए.
यूरिया की कालाबाजारी और क्राइसिस को लेकर खाद-बीज दुकानदार का कहना है कि क्षेत्र में जितनी मात्रा में यूरिया की मांग है उतना नहीं मिल रहा है, जिसके कारण यूरिया की क्राइसिस हो रही है. दुकानदारों का कहना है कि राज्य में खाद की किल्लत पर झारखंड एग्रिको चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष आनंद कोठारी के मुताबिक थोक विक्रेता और कृषि पदाधिकारियों की सांठगांठ से कालाबाजारी की जा रही है, जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है. फसल की पैदावार अच्छी हो, किसान आत्मनिर्भर बने. इसे लेकर सरकारी स्तर पर कई योजनाएं चलाई जा रही है, जिसका लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पा रहा है. खाद की कालाबाजारी को लेकर आनंद कोठारी ने कहा कि मामले में सूबे के मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री को भी पत्र के जरिए अवगत कराया गया है, ताकि किसानों की समस्या दूर हो सके.राज्य में कुल कृषि योग्य भूमि के सर्वाधिक क्षेत्रफल पर धान की खेती होती है. किसान धान की पैदावार से ही साल भर अपना गुजारा चलाते हैं. अगर पैदावार अच्छी नहीं हुई तो किसानों के सामने भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो जाएगी. जिला कृषि पदाधिकारी के मुताबिक अच्छी बारिश और कोरोना महामारी को लेकर राज्य के प्रवासी मजदूरों के वापस आने के कारण इस बार धान की खेती शत-प्रतिशत हुई है, जिससे खाद की मांग बढ़ी है.
कोठारी ने कहा कि हर साल की अपेक्षा आवंटन भी कम हुई है, जिससे आपूर्ति में थोड़ी दिक्कत आई है, जिसे दूर करने का प्रयास किया जा रहा है, साथ ही यूरिया की जमाखोरी को रोकने के लिए लगातार विभाग छापेमारी कर रही है. प्रखंड स्तर के पदाधिकारियों को भी इसको लेकर मॉनिटरिंग करने का आदेश दिया गया है. उन्होंने कहा कि यूरिया का क्राइसिस जल्दी समाप्त करने को लेकर विभाग प्रयासरत है और जमाखोरी करने वाले दुकानदारों पर कार्रवाई करने के साथ-साथ लगातार छापेमारी भी की जा रही है.
बता दें कि झारखंड एक कृषि प्रधान राज्य है. यहां के सर्वाधिक किसान धान की खेती पर निर्भर रहते हैं. पिछले कई सालों से मौसम का मार झेल रहे किसानों के लिए इस बार मॉनसून सही समय पर आने से काफी उम्मीद जगी है, लेकिन इसके बावजूद भी किसानों के चेहरे पर मायूसी छा गई है. अब इसको लेकर विभाग किस तरह से प्रयास करती है यह देखने वाली बात होगी, ताकि किसानों को फर्टिलाइजर की किल्लत से निजात मिल सके.