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यही विकास है? आजादी के बाद से बिहार के इस गांव में नहीं बनी पक्की सड़क, कंधे पर दूल्हे को बैठा कर ले जाते हैं लोग

यही विकास है? आजादी के बाद से बिहार के इस गांव में नहीं बनी पक्की सड़क, कंधे पर दूल्हे को बैठा कर ले जाते हैं लोग

आजादी के 7 दशक बाद भी चोंगाई प्रखंड स्थित नाचाप पंचायत का पुरैना गांव के लोग सड़क, अस्पताल, बिजली, स्कूल के लिए तरस रहे हैं. आज भी दूल्हे इंसानों के कंधे पर सवार होकर शादी के मंडप तक पहुंच रहे हैं. आजादी के 73 साल बाद भी बिहार के दर्जनों गांव के यही हालात हैं. ना सड़क है, ना ही बिजली है और ना ही स्कूल.
बक्सर: आजादी के 73 साल बाद क्या आधुनिक भारत की तस्वीर बदल पाई है? बक्सर के चौगाई प्रखंड स्थित नाचाप पंचायत के पुरैना गांव को देखकर तो ऐसा नहीं लगता है. क्योंकि आजादी के 7 दशक बाद भी भारत के इस गांव को पक्की सड़क तक नसीब नहीं हो सकी है. लिहाजा गांव वालों को कई परेशानियों से हर रोज दो चार होना पड़ता है. हैरानी की बात है कि चुनाव के दौरान सड़क बनाने का दावा करने वाले नेता जी चुनाव जीतने के बाद इस गांव में जाना भी पसंद नहीं करते हैं. गांव में परेशानी इस कदर है कि यहां शादी करके आनेवाली बहुएं अपने आप को कोसती रहती हैं.
पिछले दिनों इसी गांव से एक वीडियो वायरल हुआ. जिसके कारण यह गांव और ज्यादा सुर्खियों में आ गया है. वीडियो में दिख रहा है कि गांव में सड़क की सुविधा नहीं होने के कारण दूल्हे को कंधे पर उठाकर लोग शादी के मंडप में ले जा रहे हैं. आज भी इस गांव के लोगों के लिए, स्कूल, अस्पताल, सड़क, बिजली, यातायात की सुविधा सपने के जैसा ही है. जहां बीमार पड़े लोगों की इलाज के अभाव में घर में ही मौत हो जाती है.
दरअसल, यह तस्वीर उस आत्मनिर्भर भारत की है, जहां की 71 फीसदी आबादी गांव में ही बसती है. यह तस्वीर उस बिहार की है, जहां के मुखिया बिहार के किसी भी कोने से पांच घंटे में पटना पहुंचने का दावा करते हैं. लेकिन उनका दावा जमीन पर कितना है. इस तस्वीर को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं. आजादी के 73 साल बाद भी इस गांव की तस्वीर में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. आज भी यहां के लोग मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहे हैं.
पक्की सड़क तो आज भी एक सपने जैसा लगता है. इस सपने को पूरा करने के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने कई ख्वाब दिखाए. लेकिन आज तक इस मसले पर न तो किसी ने गंभीरता दिखाई और ना ही किसी ने इस दिशा में कोई पहल की. नेता चुनाव के समय हाथ जोड़कर वोट मांगने आ जाते हैं. परिणामों की घोषणा होते ही वे लौट कर नहीं आते. आलम यह है कि आज भी ग्रामीण अपनी तकदीर को कोस रहे हैं. लोग अपनी मजबूरियों के बीच समय व्यतीत कर रहे हैं.’ -स्थानीय निवासी
लंबे समय से सड़क के अभाव में पढ़ाई से वंचित गांव की बेटियों ने तो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है. गांव की बेटियां बताती हैं कि इस नारे और अभियान का क्या मतलब, जब हमें स्कूल ही नसीब नहीं है. गांव में सड़क के अभाव के कारण हम स्कूल तक नहीं जा पाते हैं. दूसरे गांव में व्यवस्था है, लेकिन गांव की सड़कों का जो हाल है, वहां जाना भी मुश्किल है.
‘पक्की सड़क के अभाव में हमें इस गांव में घुट-घुट कर जीवन बिताना पड़ रहा है. अगर किसी की तबीयत खराब हो जाए तो गांव से बाहर जाने के लिए सड़क नहीं है. ऐसे में मरीज की क्या हालत होगी और उनके परिजनों पर क्या गुजरेगी, जरा सोचिए. इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. इस गांव में शादी करने के बाद से हमारी किस्मत ही फूट गई है.’ -ग्रामीण महिला
इस गांव में धूमधाम के साथ बारात लेकर पहुंचे इस दूल्हे की तस्वीर को देखकर आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि गांव को स्मार्ट बनाने की दावा करने वाली सरकार गांव का कितना विकास कर पाई है और स्थानीय जनप्रतिनिधि इन समस्याओं को दूर करने के लिए कितना गंभीर हैं.
यह नजारा केवल नचाप पंचायत के पुरैना गांव का ही नहीं है. बल्कि आसपास के कई ऐसे गांव हैं जो आज भी पक्की सड़क की बाट जोह रहे हैं. लेकिन गांव वालों की परेशानियों पर अब तक किसी ने ध्यान नहीं दिया है. ऐसे में आजाद भारत की खूबसूरत तस्वीर की कल्पना गांव वालों को आज भी बेमानी लगती है.

*कोरोना: इलाज के लिए आयुर्वेद बनाम एलोपैथी पर विवाद गलत, जानें कितना प्रभावी है आयुर्वेदिक इलाज*

कोरोना महामारी के दौर में एलोपैथी और आयुर्वेद को लेकर विवाद तेज है. एलोपैथ या फिर आयुर्वेद से कोरोना के इलाज को लेकर चल रहे विवाद पर पटना के राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के डॉक्टर ने बताया कि इस मसले पर विवाद गलत है.
पटनाः देश सहित बिहार में भी कोरोना (कोविड-19) के खिलाफ जंग में आयुर्वेद बनाम एलोपैथ की लड़ाई तेज हो गई है. राज्य सरकार के मान्यता नहीं देने के बाद भी पटना के कदमकुआं स्थित राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के डॉक्टर टेली काउंसलिंग के माध्यम से कोरोना मरीजों का इलाज और सलाह दे रहे हैं. महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर वैद्य रमन रंजन ने बताया कि वे केन्द्रीय आयुष मंत्रालय के गाइडलाइन का पालन कर रहे हैं.
कोरोना के इलाज को लेकर आयुर्वेद बनाम एलोपैथी की लड़ाई गलत है. इस पर विवाद होना गलत है. कोरोना के दूसरे वेब में काफी संख्या में माइल्ड और मॉडरेट मरीजों को ठीक किया है. इसके अलावा कई सीवियर मरीजों को भी ऐलोपैथिक दवाइयों के साथ-साथ आयुर्वेदिक दवाइयां ऐड ऑन किया है, जिसका उन्हें काफी लाभ मिला है. इससे मरीज की रिकवरी काफी तेजी से हुई है. आयुर्वेद में भी कई तरह की दवाइयां हैं. जरुरी नहीं है कि सभी मरीज एक ही दवाओं का सेवन करें. लक्षण के आधार पर दवाइयां दी जानी चाहिए. किसी तरह की दवाई लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है.”- वैद्य रमन रंजन, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालयवैद्य रमन रंजन किशनगंज सदर अस्पताल में कोरोना से तीन महीने की बच्ची की मौत, एनआईसीयू में रखा होता तो बच सकती थी जानटेली काउंसलिंग के लिए मरीजों को उनके लक्षण के आधार पर दवाइयां प्रिसक्राइब की जाती है. साथ ही मरीजों की मॉनिटरिंग भी की जाती है. यह देखा जाता है कि मरीज कितने दिन में स्वस्थ हो रहे हैं. यह देखा गया है कि आयुर्वेदिक दवाइयों से माइल्ड और मॉडरेट किस्म के मरीज पांच से दस दिन के अंदर ठीक हो जा रहे हैं. वहीं सीवियर मरीजों को एलोपैथिक दवाओं के साथ-साथ आयुर्वेदिक दवाएं दी जा रही है. सिर्फ आयुर्वेद से सैकड़ों मरीज स्वस्थ हो चुके हैं. कोरोना काल में आयुर्वेद के प्रति लोगों का नजरिया साकारात्मक हुआ है.- वैद्य रमन रंजन, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय
जानटेली काउंसलिंग के लिए मरीजों को उनके लक्षण के आधार पर दवाइयां प्रिसक्राइब की जाती है. साथ ही मरीजों की मॉनिटरिंग भी की जाती है. यह देखा जाता है कि मरीज कितने दिन में स्वस्थ हो रहे हैं. यह देखा गया है कि आयुर्वेदिक दवाइयों से माइल्ड और मॉडरेट किस्म के मरीज पांच से दस दिन के अंदर ठीक हो जा रहे हैं. वहीं सीवियर मरीजों को एलोपैथिक दवाओं के साथ-साथ आयुर्वेदिक दवाएं दी जा रही है. सिर्फ आयुर्वेद से सैकड़ों मरीज स्वस्थ हो चुके हैं. कोरोना काल में आयुर्वेद के प्रति लोगों का नजरिया साकारात्मक हुआ है.- वैद्य रमन रंजन, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय