झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

यही श्रृंगार बच जाए

यही श्रृंगार बच जाए
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मुझे हरदम फिकर है ये, मेरा किरदार बच जाए
तुम्हारी फिक्र बस इतनी, मेरी सरकार बच जाए

जलेबी की तरह उलझी, तुम्हारी सोच है प्यारे
मेरी कोशिश में शामिल है, सदा संसार बच जाए

चले थे तुम बनाने पेड़ , बो कर बीज नफरत के
जगाता मैं हूं लोगों को, यहां अधिकार बच जाए

तेरे शासन में छायी है, उदासी गांव, शहरों में
मुझे उम्मीद काली रात का, भिनसार बच जाए

तुम्हारी हार निश्चित है, सुमन आवाम जीतेगा
धरा पर आदमियत हो, यही श्रृंगार बच जाए

श्यामल सुमन