झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

ये सत्ता हो गयी बहरी

ये सत्ता हो गयी बहरी
*****************
कोई सुनता नहीं मेरी, तो गाकर फिर सुनाऊँ क्या?
सभी मदहोश अपने में, तमाशा कर दिखाऊँ क्या?
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँ क्या?

उक्त मुक्तक को 2006 में आयोजित दिल्ली के एक बड़े कवि सम्मेलन में पढ़ा था तो वहां श्रोताओं के रूप में उपस्थित तत्कालीन सत्ताधारी दल के समर्थकों को निराशा हुई थी किन्तु उस समय के विपक्षी (आजकल सत्ताधारी) समर्थकों के चेहरे पर मैंने खुशी को स्पष्ट देखा। फिर कुछ इसी तरह का अवसर आया 2016 में और जब यही मुक्तक पढ़ा तो वो समर्थक खुश रहे थे जो पहले निराश हुए थे। यह शब्दों की / कविता की ताकत है।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह को आज उनके 115 वें जयंती पर याद करने और उनके वैचारिक/ क्रांतिकारी कदम को सलाम करने की जरूरत है क्योंकि आज देश के जो हालात हैं उसमें आमजनों की दुर्दशा अंग्रेजी हुकूमत से भी बदतर है।

मात्र 23 साल की छोटी सी उम्र और समाज / देश की बेहतरी के लिए एक गहरी वैचारिकता के साथ क्रांति की अमिट लौ जलानेवाले भगत सिंह के जीवन की गाथा देश और दुनिया के लिए एक अनुकरणीय मिसाल है और उनकी शहादत सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि एक *बलिदानी विचारधारा* या *क्रांतिकारी संस्कृति* के रूप में हर जीवंत नागरिक के दिल में मौजूद है।

पुस्तकों के साथ साथ आमलोगों की जिन्दगी को शिद्दत से पढ़कर समझने वाले भगत सिंह द्वारा लिखी डायरी के पन्नों, उनके कुछ महत्वपूर्ण आलेखों के माध्यम से भगत सिंह को लोग आज भी पढ़कर / सुनकर समझ रहे हैं और अगले हजारों साल तक समझते रहेंगे क्योंकि भगत सिंह सिर्फ एक व्यक्ति नहीं बल्कि उस सोच का नाम है जो देश और देशवासियों की भलाई के लिए अपना जीवन तक समर्पित करने हेतु हमें प्रेरित करता है और करता रहेगा।

श्यामल सुमन