उन रिश्तों को काहे जपना?
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वक्त पे तुम जो आए होते, शायद नहीं पराए होते!
बुरे वक्त के साथी सँग हम, गीत खुशी के गाए होते!!
जीवन सबका होता अपना, जिसमें अपनापन है सपना।
काम वक्त पे जो ना आए, उन रिश्तों को काहे जपना?
तनिक सहारा मिलने पर हम, दुख में भी मुस्काए होते!
बुरे वक्त के साथी —–
वक्त मिला जो वही वक्त है, जो कोमल भी कहीं सख्त है।
वक्त पे जिसने वक्त को जाना, वक्त दिलाता उसे तख्त है।
हाथ बढ़ाते वक्त पे तुम तो, तुमसे हाथ मिलाए होते!
बुरे वक्त के साथी —–
आस पास में जो भी गम है, ऑंखें देखो अक्सर नम है।
झाँक सुमन तू नीचे अपने, तेरा गम कितनों से कम है।
इक इक हम तुम मिलके ग्यारह, अपने कदम बढ़ाए होते!
बुरे वक्त के साथी —–
श्यामल सुमन
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