तू अपने, सपने को बुन
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मैं तुझ में, तू मुझ में गुम, मैं तुझको, तू मुझको सुन।
बहुत कंटीला है जीवन-पथ, उसी बीच में सुमन को चुन।।
जीवन में संघर्ष जहाँ है, सच मानो उत्कर्ष वहाँ है।
आती जाती गर्मी, सर्दी, पर बारिश बिन हर्ष कहाँ है।
तुम खुद को बदलो मौसम सा, नहीं व्यर्थ में माथा धुन।
मैं तुझ में —–
जीवन में ज्यादा गम है, खुशियाँ तो बिल्कुल कम है।
नहीं खुशी में खुशी मिली जब, आसपास ऑंखें नम है।
गम में अगर पड़ोसी, घर में, बजती क्या पायल रुनझुन?
मैं तुझ में —–
प्रतिभाओं को बढ़ने दो, और शिखर पर चढ़ने दो।
उनको अपने अनुभव से ही, अपनी दुनिया गढ़ने दो।
सभी घोंसला अपना बुनते, तू अपने, सपने को बुन।
मैं तुझ में —–
श्यामल सुमन
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