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टायो मजदूरों की बदहाली, ज़िम्मेदार कौन जाने

जमशेदपुर: लगातार वर्षों के घाटे के कारण टायो को बंद करने का फैसला बोर्ड ऑफ डायरेक्टर ने 2016 में लिया। टायो ( )का केस एनसीएलटी में दाखिल हुआ एक लंबी कानूनी लड़ाई की शुरुआत हुई जिसके तहत लेबर कोर्ट, उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय, एनसीएलटी, एनसीएलटी, इत्यादि कई न्यायालय  में मुकदमा बाजी चली।

 

मजदूरों का एक वर्ग कंपनी द्वारा दी गई विभिन्न  पृथकीकरण योजनाओं के अंतर्गत अलग हो गया। इसी तरह अफसरों को भी एक वॉलंटरी योजना जो कि बिल्कुल आकर्षी नहीं थी के तहत जबरन अलग कर दिया गया। परंतु करीब आधे मज़दूर विभिन्न गुटों में विभिन्न नेताओं, वकीलों, राजनीतिज्ञों की शरण में गए। उन्हें यह आशा थी कि  ये तथाकथित नेता, वकील एवं राजनीतिज्ञ उनकी लड़ाई निष्पक्ष  भाव से लड़ेंगे और उनका हिस्सा दिलएंगे समय समय पर उन्हें चंदा दिया गया जिसके बदले में उन्होंने समय समय पर सभायें और प्रदर्शन किये तथा दलीले दी जिसमें मजदूरों को लाठियां भी खानी पड़ी। झूठे आश्वासनों से मजदूरों को लगातार दोहन किया गया और अंततं उनकी माली हालत बदतर होती गई। कई मजदूरों ने बच्चों और परिवार के सदस्यों को अपने पुश्तैनी घरों में रवाना कर दिया और स्वयं यहां छोटे-मोटे व्यवसाय में या नौकरी में लग गए। जिस पर नमक छिड़कने के लिए कोरोना ने तो कमर तोड़ कर रख दिया।

 

लंबी कानून  लड़ाई के बाद एनसीएलटी कोलकाता ने अप्रैल 2019 में  टायो का रेसोल्यूशन प्रक्रिया के लिए आदेश पारित किया। उसमें पहले एक रेसोल्यूशन प्रोफेशनल विनीता अग्रवाल की नियुक्ति हुई जिन्होंने विधि सम्मत तरीके से रेसोल्यूशन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। लेकिन स्वार्थी नेताओं और वकीलों की सलाह पर उन्हें उस प्रक्रिया से अलग कर दिया गया। इसके पश्चात एक अन्य रेसोल्यूशन प्रोफेशनल अनीश अग्रवाल नियुक्त हुए। यहां बता दें कि अनीश अग्रवाल  के विरुद्ध कई मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित रहे हैं। यूट्यूब के उपलब्ध कई वीडियो में उन्हें रांची का नीरव मोदी का खिताब दिया गया है।

 

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अनीश अग्रवाल ने आते ही पुराने निर्णयों को बदलना प्रारंभ किया। यहां यह बताना जरूरी है कि उनकी नियुक्ति में झारखंड बिजली बोर्ड एवं मजदूरों की सिफारिश का हाथ रहा है। बिजली बोर्ड के भ्रष्ट अफसर  बिके हुए हैं। मूर्ख मजदूर नेताओं की मिली भगत से मनमानी करवाई को अंजाम दिया जा रहा है। इसका एक जीवित नमूना पिछली तिमाही का वित्तीय परिणाम है। टायो के इस घोषित परिणाम में बिना किसी बिक्री के करोड़ों का फायदा दिखाया गया जिसका खुलासा हमने (झारखंड वानी) ने 29 जुलाई को प्रकाशित किया था।

 

मजदूरों को मालिक बनने से क्या है नुकसान जाने

मजदूरों की दुर्गति करने के लिए उन्हें अब मालिक  बताया जा रहा है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि उन्हें मजदूर होने की हैसियत से मिलने वाला एक भी लाभ नहीं मिलेगा। इसकी जानकारी भ्रष्ट मजदूर नेताओं वकीलों को तो है परंतु मजदूरों को नहीं है। इसे एक उदाहरण के द्वारा समझा जा सकता है।

अगर आज एक मजदूर टायो कॉलोनी के क्वार्टर में रह रहा है और सस्ती दर में बिजली प्राप्त कर रहा है तो मजदूर ना रहने पर उसे किसी भी समय क्वार्टर से निकाला जा सकता है और बिजली बिल का भुगतान बाजार दर पर उसके सेटलमेंट से कर लिया जाएगा।

इसी तरह अनीश अग्रवाल द्वारा अन्य सुविधाओं पर अंकुश लगाया जा रहा है। टायो में EDLI योजना के तहत कर्मी के आकस्मिक निधन होने पर रु 600000 से ज्यादा का भुगतान प्राप्त होता है। इस योजना को भी बंद कर दिया गया है। अंत आज के दिन किसी भी मजदूर की आकस्मिक मृत्यु होने पर EDLI योजना के तहत एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी। इन को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं तो कब की बंद हो चुकी है। इसी तरह मजदूरों के जो ग्रचुइटी व लीव एनकैशमेंट का भी भगवान मालिक है।

आर पी एवं बिजली बोर्ड की मिली भगत के द्वारा मजदूरों को हितों में स्वास्थ्य की अनदेखी की जा रही है। बिजली बोर्ड जो खुद एक बीमार संस्था है के द्वारा दी गई रेसोल्यूशन योजना सिर्फ एक हवाई किला या सब्जबाग है जिस में मजदूरों को कोई लाभ नहीं मिलेगा।

 

सवाल यह उठता है कि मजदूरों के इस तरह से चौतरफे शोषण के लिए कौन जिम्मेदार है। मजदूर नेता, राजनीतिक नेता, अफसर, मैनेजमेंट, न्याय व्यवस्था और वकील सबका इसमें हाथ रहा है। परंतु इस दुर्गति के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार टायो का मजदूर खुद ही है। उन्होंने विभाजित होकर अलग-अलग रास्ते अपनाए। प्रलोभन में आकर विवेक खो बैठे और आज उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। शोषण के सबसे बड़े शिकार हमेशा से मजदूर रहे हैं यह एक सनातन सच्चाई है।