सवाल तो बनता है!
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विश्व-गुरु बनने की दिशा में हम,
जबरन ठोंक रहे हैं अपनी ताल,
जबकि अपने ही देश में दो देश,
जहाँ “इंडिया” हो रहा मालामाल,
और “भारत” हो रहा लगभग कंगाल,
क्या यही है “अमृत-काल”?
सवाल तो बनता है!
देशभक्ति का नाटक,
राष्ट्रवाद का सियासी खेल,
सरकार और “कुबेर-पुत्रों” का,
अद्भुत, अटूट, अनवरत मेल,
बिकाऊ मीडिया का भोंपू,
कलमकार को बेचारा बनाकर,
जहाँ दिया गया हो धकेल,
सरकारी खजाने से भारी कर्ज लेकर,
फिर कैसे भाग रहे ये “कुबेरी-दलाल”?
सवाल तो बनता है!
राजनैतिक सफलता का मतलब,
रह गया अब सिर्फ चुनावी जीत,
चाहे क्यों न टूट जाए सदियों की,
स्थापित मिल्लत और आपसी प्रीत,
वैचारिक अंधेपन के शिकार लोग,
भूल रहे हैं अपना गौरवशाली अतीत,
जब वर्तमान का हो ऐसा हाल,
फिर कैसा होगा भविष्यत्-काल?
सवाल तो बनता है!
देश में हर जगह आमलोग उपेक्षित,
सिर्फ “लक्ष्मी-पुत्र” बने हैं सरकारी मित्र,
अतीत में सुनहरे भारत का,
ये कैसा बन रहा है “वैश्विक-चित्र”,
बाहर में चमकीले विज्ञापन की भरमार,
पर अन्दर के हालात हैं बहुत विचित्र,
सचमुच उलझन में सुमन है कि
ये “अमृत-काल” है या “मित्र-काल”?
सवाल तो बनता है!
श्यामल सुमन
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