झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

स्मार्टफोन के सहारे जिंदगी की गाड़ी, मोबाइल पर निर्भर है पढ़ाई और व्यवसाय

हजारीबाग:झारखण्ड वाणी संवाददाता:कोरोना ने जीवन की रफ्तार को रोक दिया है. जिससे पढ़ाई से लेकर व्यवसाय तक प्रभावित हुआ है. ऐसे में सभी वर्ग के लोग पर इसका गहरा असर पड़ा है. छात्रों की पढ़ाई से लेकर व्यवसाय और खरीदारी का काम भी स्मार्टफोन पर निर्भर हो गया है यही नहीं ये लोगों की जिंदगी का यह आवश्यकता भी बन गया है. जिससे लोगों पर मानसिक और शारीरिक रुप से इसका असर पड़ रहा है.

हजारीबागः कोरोना ने जीवन की रफ्तार को रोक दिया है. आलम यह है कि पढ़ाई से लेकर व्यवसाय तक प्रभावित हुआ है. ऐसे में हर एक व्यक्ति अपने आप को व्यस्त रखने के लिए स्मार्टफोन का उपयोग खूब कर रहा है. अगर आंकड़े की बात की जाए तो विभिन्न मोबाइल नेटवर्क का कहना है कि 20 से 30% डाटा का खर्चा लोगों का बढ़ा है. ऐसे में लोग अब मोबाइल एडिक्शन की ओर जा रहे हैं.
जब कोई भी सुविधा का उपयोग हद से ज्यादा हो तो उससे एडिक्शन माना जाता है. हाथों में रहने वाले मोबाइल ने जहां दुनिया को समेटकर लोगों की मुट्ठी में ला दिया है. वहीं अब मेडिकल वर्ल्ड में मोबाइल एडिक्शन कह कर बड़ी बीमारियों का कारण भी बन रहा है. यदि आंकड़ों पर गौर करें तो लगभग 20% बच्चे और 10% युवा मोबाइल एडिक्शन के शिकार हो चुके हैं. ऐसे में लॉकडाउन में यह आंकड़ा को और भी अधिक बढ़ा दिया है. बच्चे अब बिना मोबाइल के नहीं रहते हैं. स्कूल ऑनलाइन क्लासेज चला रही है. यहां तक की सारे वर्क ऑनलाइन ही दिए जा रहे हैं. असाइनमेंट भी ऑनलाइन मिल रहा है. बच्चे दिन भर मोबाइल लेकर अपने कमरों में बंद रहते हैं. ऐसे में बच्चे भी कहते हैं कि पढ़ाई के बाद जो समय मिलता है हम मोबाइल पर ही बिताते हैं, क्योंकि हमें घर से बाहर तो जाना नहीं है. ऐसे में मन लगाने का एकमात्र साधन अब मोबाइल है.
मोबाइल के आदि हो चुके हैं युवाबच्चे तो बच्चे युवा छात्र भी कहते हैं कि हम लोग यह स्वीकार करते हैं कि हम मोबाइल के आदि हो चुके हैं. आलम यह है कि अब घर में टीवी भी रिचार्ज नहीं होता है और हम लोग मोबाइल पर ही टीवी देखना पसंद करते हैं. छात्र कहते हैं कि अब हमारी मजबूरी है मोबाइल, क्योंकि हमें पढ़ाई भी इसी के जरिए करनी है. पहले हम मोबाइल का उपयोग इतना नहीं करते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण पिछले 4 महीने में मोबाइल हमारा जीवन का अंग बन गया है. सुरक्षा के दृष्टिकोण से अखबार भी लेना पसंद नहीं करते हैं. हम लोग ऑनलाइन अखबार भी पढ़ते हैं, किताब भी पढ़ते हैं और समाचार भी देखते हैं. आलम यह है कि अब बड़े-बड़े न्यूज घराने भी मोबाइल ऐप के जरिए हम लोगों को खबर पहुंचा रहे हैं. ऐसे में मोबाइल की सार्थकता बढ़ गई है
अभिभावकों का कहना है कि मोबाइल पहले हम बच्चों को नहीं दिया करते थे, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण मोबाइल अब हम नहीं हमारे बच्चे रखते हैं. क्योंकि उनका कहना है कि स्कूल हमें ऑनलाइन पढ़ाई करवा रहा है और सारे मटेरियल व्हाट्सएप पर विभिन्न आयाम के जरिए दिया जा रहा है. हमें पढ़ाई करना है. जब वे रूम में जाते हैं पढ़ाई करते हैं यह गेम खेलते हैं या कुछ और इसकी जानकारी हमें नहीं होती है. आलम यह है कि बच्चे अब मोबाइल के प्रति इतने जागरूक हो गए हैं कि हमारे पास कोई भी जानकारी और डाटा नहीं रहता है
अभिभावकों का यह भी मानना है कि मोबाइल कभी भी खेल या पढ़ाई का ऑप्शन नहीं हो सकता है. आज मजबूरी है कि हम लोग अपने बच्चों को मोबाइल दे रहे हैं. जिनके पास पैसा है वह घर पर ही स्मार्ट टेलीविजन लगा दिए हैं. अब छात्र स्मार्ट टेलीविजन से पढ़ाई कर रहा है, लेकिन सब के पास पैसा नहीं है इसलिए हम लोग अब मोबाइल ही अपने बच्चे को दे देते हैं, ताकि वह पढ़ाई कर सके और खुद को व्यस्त भी रख सके.
हजारीबाग मेडिकल कॉलेज में सेवा दे रही मनोचिकित्सक भी कहती है कि अगर छात्रों को हम व्यस्त नहीं रखेंगे तो उनके मानसिक स्तर पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि बच्चे अभी खेलने के लिए घर से बाहर भी नहीं निकल रहे हैं और स्कूल भी बंद हैं. ऐसे में इंटरनेट का सही उपयोग किया जाए, बच्चों पर पैनी नजर रखने की जरूरत है तो यह मनोरंजन का साधन बन सकता है.
हजारीबाग के ख्याति प्राप्त नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर डॉ एन सिंह भी छात्रों और उनके अभिभावकों को कहते हैं कि बच्चे जब मोबाइल पर काम कर रहे हैं. बच्चों को तीन बातों पर विशेष रूप से जरूर ध्यान देने की जरूरत है. मोबाइल से आंख की दूरी रहे, लगातार मोबाइल पर काम न करके दाएं-बाएं धरती को देखना है. 1 मिनट तक लगातार स्क्रीन पर ना देख कर आंख खोलना और बंद करना है, ताकि आंखों पर जोर न पड़े. उनका यह भी कहना है कोशिश करें कि मोबाइल का उपयोग कम ही हो क्योंकि अगर मोबाइल अधिक उपयोग करेंगे तो आंखों की रोशनी पर भी बुरा असर पड़ सकता है. निसंदेह कहा जा सकता है कि अब मोबाइल लोगों की आवश्यकता का अंग बन गया है, लेकिन जिस तरह से मोबाइल का उपयोग लोग कर रहे हैं यह खतरे से कम नहीं है. हाल के दिनों में जो अनुसंधान हुए हैं उसमें यह स्पष्ट हुआ है कि मोबाइल के उपयोग से कई शारीरिक मनोवैज्ञानिक सामाजिक और नैतिक समस्याएं उत्पन्न होती दिख रही है. सर दर्द, गर्दन में दर्द, आंखों का लाल होना, थकावट, आंख में तनाव और अनिद्रा जैसी बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है. वहीं एक अनुसंधान के दौरान यह भी बात सामने आई है कि चेहरे की त्वचा लटक जाती है डबल स्किन की समस्या उत्पन्न हो जाती है. चेहरे पर लाइन विजिबल हो सकती है. जिससे चेहरा उमर दराज लग सकता है. शोधकर्ताओं ने यह भी बताया है कि ड्राइविंग के समय मोबाइल का उपयोग करना अल्कोहल के नशे में गाड़ी चलाने से अधिक घातक सिद्ध हो सकता है.