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रसायनिक खाद की जगह जीवामृत अपनाकर खेती को बनाया मुनाफा का कारोबार

जमशेदपुर सदर प्रखंड के गोड़गोड़ा पंचायत अंतर्गत खिकड़ीघुटु के रहने वाले सिंगराई सोरेन प्रगतिशील युवा किसान हैं जिन्होंने जीवामृत खाद का प्रयोग कर सब्जी की खेती को मुनाफे का कारोबार बनाया है। श्री सोरेन बताते हैं कि जीवामृत खाद के विषय में जानकारी होने से पहले रसायनिक खाद का प्रयोग करते थे। उन्होंने बताया कि धान एवं साग-सब्जी की खेती में रसायनिक खाद के प्रयोग में सालाना लगभग 08-10 हजार रू. का लागत आता था। जीवामृत के प्रयोग से एक ओर जहां लागत में कमी आई वहीं खेत भी उर्वरा हुआ।

जिला कृषि/उद्यान पदाधिकारी मिथिलेश कालिंदी की पहल पर सिंगराई सोरेन को अनुदान पर जीवामृत उत्पादन इकाई प्राप्त हुआ जिससे वह घर पर ही जैविक खाद का उत्पादन कर अपने साग-सब्जी के खेत में प्रयोग करके अच्छा उपज प्राप्त कर रहे हैं। लगभग 01 एकड़ जमीन में बोदी, करेला, मूली, नेनुआ, झिंगा आदि की खेती में इन्होंने जीवामृत का प्रयोग छिड़काव एवं नाली विधि से किया। जीवामृत के लगातार प्रयोग से जहां भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ रही है वहीं अब इनके खेत की मिट्टी में परिर्वतन भी देखने को मिल रहा है, मिट्टी पूरी तरह उपजाऊ हो रही है। अपने खेत में जीवामृत (जैविक) खाद का प्रयोग कर खेती से लगभग 350-500 किग्रा. प्रति एकड़ अधिक उत्पादन प्राप्त किया। जीवामृत द्वारा उगाई गई फसलों में कीडों का आक्रमण भी कम होता है जिससे कीट नियन्त्रण के लिए रसायनिक दवा का बहुत कम प्रयोग होता है वहीं फसल का पैदावार भी अधिक रहता है।

खरीफ मौसम में धान के खेती के अलावा सिंगराई को अतिरिक्त आमदनी सब्जी उत्पादन से हो जाता है। सलाना लगभग 45,000-50,000 रू0 ये सब्जी बेचकर मुनाफा कमा लेते है जिससे इनके परिवार की आर्थिक आवश्यकता पूरा करने में मदद हो जाती है। सिंगराई अपने परिवार के साथ खेती का कार्य करते हैं। नजदीकी हाट-बाजार तक सब्जी पहुंचाने में श्री सोरेन की पत्नी भी सहयोग करती हैं। सिंगराई सोरेन कहते हैं कि यदि युवा किसान भाई पंरपरागत धान की खेती के अलावा साग-सब्जी का भी खेती जीवामृत खाद का प्रयोग कर करेंगे तो नगद लाभ तो प्राप्त होगा ही साथ ही अपना छोटा-छोटा जरूरी काम के लिए रूपयों का कमी नहीं होगा एवं परिवार का भरण-पोषण अच्छे तरीके से कर पायेंगे।