कोरोना महामारी के कारण रांची के कई व्यावसायिक क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. इसका सबसे ज्यादा असर शिक्षा व्यवस्था पर पड़ा है. देशभर के शिक्षण संस्थाएं बंद हैं, जिससे रांची के किताबों का हब कहा जाने वाला पुस्तक पथ के पुस्तक व्यवसायियों की हालत खराब है. पिछले साल की तुलना में इस साल किताब दुकानदारों का 75 फीसदी का घाटा हुआ है. इस बार व्यवसाय मात्र 25 फीसदी ही रह गई है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब है.
रांची: कोरोना महामारी के कारण शहर के प्रमुख बुक स्टोर और बुक पब्लिशिंग इंडस्ट्री की हालत खराब है. इस महामारी ने पुस्तक व्यवसाय से जुड़े व्यवसायियों की कमर तोड़ दी है, जिससे इस व्यवसाय को करने वालों पर गहरा झटका लगा है. इसका असर रांची के किताबों का हब कहा जाने वाला पुस्तक पथ पर भी पड़ा है जिससे दुकानदारों की हालत काफी दयनीय हो गई है. व्यवसायियों की मानें, तो इस साल मात्र 25 फीसदी व्यवसाय ही हो पाया है कोरोना महामारी के कारण रांची के कई व्यावसायिक क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित है. इसका सबसे ज्यादा असर शिक्षा व्यवस्था पर देखा जा रहा है. देश भर के शिक्षण संस्थाएं बंद हैं. बच्चों की गतिविधियां नहीं है. स्कूल, कॉलेज, कोचिंग सेंटरों में ताले जड़े हुए हैं, जिसका सीधा असर किताब व्यवसाय पर भी पड़ा है. पिछले साल की तुलना में इस साल किताब दुकानदारों का 75 फीसदी का घाटा हुआ है. इस बार व्यवसाय मात्र 25 फीसदी ही रह गया है. पुस्तक व्यवसाय से लोगों की स्थिति काफी दयनीय है.
लॉकडाउन से तीन महीने पहले ही स्टेशनरी और किताब व्यवसाय से जुड़े व्यवसायियों ने विभिन्न पुस्तकों और पठन-पाठन से संबंधित सामग्रियों का स्टॉक कर लिया था, लेकिन जैसे ही कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन की घोषणा हुई, स्टॉक दुकानों में ही रह गया. अब यह व्यापारी ग्राहकों की राह देख रहे हैं. कोरोना के कारण रांची का हब कहा जाने वाला पुस्तक पथ, जो कि अपर बाजार में स्थित है. वह पूरी तरह चौपट हो गया है. यह सिर्फ राजधानी रांची के ही पुस्तक मंडी की बात नहीं है, बल्कि झारखंड के बड़े-छोटे तमाम पुस्तक मंडियों में स्थिति कमोबेश एक समान है. शौक्षणिक संस्थान बंद होने के कारण यह असर देखने को मिल रहा है. पुस्तक कारोबारियों का कहना है कि कोरोना वायरस की वजह से राज्य सरकार ने स्कूल, कॉलेज, कोचिंग समेत अन्य सभी शिक्षण संस्थाएं बंद रखने का निर्देश दिया है. इस वजह से एक पेंसिल तक की बिक्री स्टेशनरी और पुस्तक दुकानों से नहीं हो रही है. पहले की अपेक्षा बिजनेस 75 फीसदी घाटा से चल रहा है. बाजार में मात्र 25 फीसदी ही बिजनेस रह गया है. ऐसे में अब इस व्यवसाय से जुड़े लोग काफी परेशान हैं.
झारखण्ड वाणी संवाददाता ने रांची के पुस्तक मंडी का हब कहा जाने वाला अपर बाजार स्थित पुस्तक पथ का जायजा भी लिया. इस दौरान अधिकतर व्यवसायियों ने अपनी पीड़ा बताते हुए शैक्षणिक संस्थान बंद होने का हवाला देते हुए पूरा व्यवसाय चौपट होने की बात कही. एक बात सामने उभर कर आ रही है कि अधिकतर लोग कोरोना के खौफ के कारण बाजारों का रुख नहीं कर रहे हैं. इसके बदले ऑनलाइन पुस्तक डाउनलोड कर पढ़ाई कर रहे हैं. ई-बुक्स की वजह से भी बाजार से लोग किताबें नहीं खरीद रहे हैं.
प्रकाशन उद्योग पर भी कोरोना वायरस का बुरा प्रभाव पड़ा है. शहर के प्रमुख बुक स्टोर्स से जुड़े कामगारों का हालत भी काफी खराब है. बुक पब्लिशिंग इंडस्ट्री की हालत खस्ता है. इस महामारी ने इन्हें बड़ा झटका दिया है. इनका नुकसान लगातार हो रहा है. इंटरनेट के जरिए पुस्तकों की बिक्री में लगातार वृद्धि हो रही है. एक्सपर्ट और बुद्धिजीवियों की मानें तो लोग बाजारों में जाकर किताब खरीदने में परहेज कर रहे हैं. इस वजह से यह स्थिति उत्पन्न हुई है.
व्यवसायियों की मानें तो इस समय विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएं लगातार आयोजित होती है, लेकिन फिलहाल तमाम चीजें स्थगित होने की वजह से प्रतियोगी परीक्षा से जुड़े किताबों के साथ-साथ संबंधित परीक्षाओं से जुड़े किताबों की बिक्री भी नहीं के बराबर हो गई है. लोग बाजारों का रुख न कर ई-लर्निंग के जरिए ही पढ़ रहे हैं और इसका असर सीधे तौर पर पुस्तक बाजार पर पड़ा है. पिछले साल प्रतियोगी परीक्षा से जुड़े किताबों की बिक्री अगस्त महीने तक 95 फीसदी तक हो चुकी थी, लेकिन इस साल किताबें दुकानों में ही पड़ी रह गई.
पिछले साल विभिन्न स्कूल, कॉलेज संबंधित किताबों की बिक्री अगस्त तक 90% हो चुकी थी, लेकिन इस बार किताबों की बिक्री मात्र 25 प्रतिशत ही हुई है. ऐसे में इनका धंधा अब चौपट हो गया है. लोग ग्राहकों के इंतजार में दिनभर दुकान में बैठे रहते हैं और रात को दुकान बंद कर घर चले जाते हैं. दुकानदारों की मानें तो वह फिलहाल दुकानों में बैठ कर टाइम पास कर रहे हैं.
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