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पितृपक्ष 2020 : घरों से ही करें पिंडदान, जानें पहले दिन का महत्व

इस बार कोरोना काल के चलते मोक्ष नगरी गया में पितृपक्ष मेले का आयोजन नहीं किया गया है. लेकिन लोग अपने घरों से पिंडदान कर सकते हैं. ऐसे में पौराणिक मान्यताओं का ध्यान में रखना बेहद जरूरी हो जाता है. गया : पितृपक्ष के तहत पिंडदान शुरू हो गया है. गयाजी में 17 दिवसीय पिंडदान में आज यानी पूर्णिमा तिथि को फल्गुनी नदी तीर्थ में स्नान, तर्पण और नदी तट पर खीर के पिंड से फल्गु श्राद्ध करने का विधान है. जिन लोगों की मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन करना चाहिए. इस बार पितृपक्ष 1 सितंबर से शुरू हुआ है, जो 17 सितंबर तक रहेगा. इस दौरान पिंडदानी अपने पितरों (पूर्वजों) का तर्पण कर सकते हैं.

पितृपक्ष का क्या है अर्थ?
पितृपक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है पितरों का पखवाड़ा, यानी पूर्वजों के लिए15 दिन. पितृ पक्ष हर साल अनंत चतुर्दशी के बाद भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पितृपक्ष के रूप में मनाया जाता है.
ऐसी मान्यता है कि इन पंद्रह दिनों के दौरान पूर्वज मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से अपने परिजनों के पास पहुंचते हैं. पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान व श्राद्धकर्म करने से पूर्वजों को पृथ्वी लोक में बार-बार जन्म लेने के चक्र से मुक्ति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस पर्व में अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता और उनकी आत्मा के लिए शान्ति देने के लिए श्राद्ध किया जाता है.
पितृपक्ष श्राद्ध की पूजा विधि
श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है.
श्राद्ध में इन चीजों को विशेष रुप से सम्मिलित करें.
इसके बाद श्राद्ध को पितरों को भोग लगाकर किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं.
तिल और पितरों की पंसद चीजें, उन्हें अर्पित करें.
श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए.
श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है.
अंत में कौओं को श्राद्ध का भोजन कराएं. क्योंकि कौए को पितरों का रुप माना जाता है.
गया वाले पंडा समाज के गजाधर लाल पंडा कहते हैं, ‘पिंडवेदी कोई एक जगह नहीं है. तीर्थयात्रियों को धार्मिक कर्मकांड में दिनभर का समय लग जाता है. ऐसे में लोग पूरी तरह थक जाते हैं, और तीर्थयात्री अपने परिवार के साथ आराम की तलाश करते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘आश्विन माह के कृष्णपक्ष के पितृपक्ष पखवारे में विष्णुनगरी में अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना लिए देश ही नहीं, विदेशों से भी सनातन धर्मावलंबी गया आते हैं. इस मेले में कर्मकांड का विधि-विधान कुछ अलग-अलग है.’
उन्होंने बताया, ‘श्रद्घालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, 15 दिन और 17 दिन तक का कर्मकांड करते हैं. कर्मकांड करने आने वाले श्रद्घालु यहां रहने के लिए तीन-चार महीने पूर्व से ही इसकी व्यवस्था कर चुके होते हैं.’
ज्योतिषों के अनुसार जिस तिथि को माता-पिता, दादा-दादी आदि परिजनों की मृत्यु होती है, उस तिथि पर इन सोलह दिनों में उनका श्राद्ध करना उत्तम रहता है. जब पितरों के पुत्र या पौत्र द्वारा श्राद्ध किया जाता है तो पितृ लोक में भ्रमण करने से मुक्ति मिलकर पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो जाता है.
आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष माना जाता है. वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है. मान्यता के मुताबिक, पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि (बरसी) तथा महालय (पितृपक्ष) में उनका विधिवत श्राद्ध करे.
गया को विष्णु का नगर माना जाता है, जिसे लोग विष्णु पद के नाम से भी जानते हैं. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण के अनुसार यहां पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है. मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं.
ऐसी मान्यताएं हैं कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए यहीं आये थे और यही कारण है की आज पूरी दुनिया अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए आती है.
पिंडवेदियों में प्रेतशिला, रामशिला, अक्षयवट, देवघाट, सीताकुंड, देवघाट, ब्राह्मणी घाट, पितामहेश्वर घाट काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. कई दशकों से यहां पितृपक्ष मेला लगता रहा है. लेकिन इस बार कोरोना महामारी के चलते मेले को रद्द कर दिया गया है.