नई दिल्ली। सिर पर हाथ रखे सज्जाद मलिक का चेहरा लटका हुआ है. मक्का की ऐतिहासिक ‘मस्जिद अल-हरम’ के पास टैक्सी बुकिंग का उनका ऑफ़िस इन दिनों वीरान है.
वो कहते हैं, “यहाँ काम नहीं है, तनख्वाह नहीं है, कुछ भी नहीं है.”
“आम तौर पर हज के पहले इन दो-तीन महीनों में मैं और मेरे ड्राइवर इतना पैसा कमा लेते थे कि पूरे साल का गुज़ारा चल जाता था. लेकिन इस बार कुछ नहीं है.”
सज्जाद मलिक के लिए काम करने वाले ड्राइवरों में से एक समीउर रहमान भी हैं. वे सऊदी अरब की उस जमात का हिस्सा हैं, जो इस देश में रोज़ी-रोटी के लिए आए हैं.
समीउर हर रोज़ मक्का की मशहूर क्लॉक टावर के आस-पास की सड़कों पर चल रही गतिविधियों की जानकारी टैक्सी बुकिंग ऑफ़िस भेजा करते हैं.
कभी इस शहर की सड़कों पर सफ़ेद लिबास पहने हाजियों का समंदर उमड़ा करता था. कड़ी धूप से बचने के लिए उनके हाथों में छतरियाँ होती थीं.
लेकिन हाजियों से गुलज़ार रहने वाली सड़कें इस बरस सूनी हैं. सड़क पर कबूतरों की फौज ने डेरा जमा रखा है.
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