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मेजर आनंद: पैसे की पहचान यहाँ पर..करता मोहब्बत कोई नहीं..!

रामसे ग्रुप की फिल्म-‘अंधेरा’ फिल्मी कैरियर शुरू करने वाले अभिनेता मेजर आनंद के हिस्से में जब फिल्म-‘शोले’ आई तब जा कर उनकी तकदीर ने करवट ली। अमज़द खान@ गब्बर सिंह के साथ निभाये गए एक छोटे से रोल ने मेजर आनंद को सुर्खियों में ला दिया। अभिनेता मेजर आनंद ने 70 के दशक में ही फौज की नौकरी छोड़ कर अपना रुख फिल्मों के तरफ किया और फिल्मी कर्मपथ पर अग्रसर हुए। ‘अंधेरा'(1974),मस्तान दादा(1944),त्रिमूर्ति(1974),धर्मात्मा(1975),रफ्तार(1975),काली चरण(1976),मेरा वचन गीता की कसम(1977),चांदी सोना(1977),कलाबाज(1977),नया दौर(1978),देवता(1978),भयानक(1979), गंगा की बेटी(1980-भोजपुरी), अब्दुल्लाह(1980), La nouvelle(1982), जख्मी इंसान(1982), डायल100(1982), हमसे है ज़माना(1983), आवाज़(1984), कानून मेरी मुट्ठी में(1984), फूलन देवी(1985 बंगला), कहानी फूलवती की (1985), प्रहरी(1985 बंगला), पहरेदार(1985), इतनी जल्दी क्या है(1986), 7साल बाद(1987), वतन(1987),दयावान(1988), आखिरी बाजी(1989), दुश्मन(1990),जान लड़ा देंगे (1990) और ढोल बजता रहा (1990) जैसी अनगिनत फिल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा बिखेर चुके अभिनेता मेजर आनंद 80 बसंत देख चुके हैं परंतु आज भी कुछ करते रहने का जज्बा उनके दिलोदिमाग में आज भी कायम है।इसलिए खुद को व्यस्त व जगाये रखने के लिए फिलवक्त वो मुम्बई में प्रॉपर्टी डीलर का काम भी कर रहे हैं। रीयल इस्टेट कंसल्टेंट्स के रूप में वो चर्चित शख्शियत के रूप में उभर कर सामने आए हैं।
बदलते हुए दौर में खुद के लिए भी रास्ता बदलने की वज़ह जब मैं छोटी सी मुलाकात के दौरान अभिनेता मेजर आनंद से जानना चाहा तो कुछ देर तो वो खामोश हो गए फिर मुस्कुराते हुए कहा-“पैसे की पहचान यहाँ पर….करता मोहब्बत कोई नहीं….! मैं ढेर सारी फिल्मों में काम करने के बाद भी खुद को असुरक्षित महसूस करे लगा था इसलिए परिवार और खुद को संभालने के लिए रियल इस्टेट का काम शुरू किया”।
डिजिटल युग के दौर में फिल्म मेकिंग के क्षेत्र में आये बदलाव की चर्चा करने पर मेजर आनंद कहते हैं-“परिवर्तन संसार का नियम है…डिजिटल युग में मेकिंग आसान हुआ है लेकिन फिल्मों की मार्केटिंग काफी टफ हो गई है इसका मूल कारण है कॉरपोरेट सेक्शन का हावी होना… इसलिए फिल्म निर्माता भी काफी सोच समझ कर किसी को अनुबंधित करते हैं….वैसे फिल्म मेकिंग आज के दौर में रिस्की जॉब है। आज के दौर में न्यू फिल्म मेकर केवल प्रयोग में लगे हैं…स्टोरी गीत संगीत पर इस कारण अटैक हो रहा है…अब तो संदेशपरक फिल्मों का निर्माण तो बंद सा हो गया है…स्क्रीन से समाज व परिवार से जुड़े कैरेक्टर गायब हो गए हैं….मनोरंजन के नाम पर सेक्स व फूहड़ता का समावेश फिल्मों में किया जा रहा है”।
नवोदित प्रतिभाओं के प्रति काफी चिंता जताते हुए अभिनेता मेजर आनंद पुनः कहते हैं-“बॉलीवुड में संघर्षरत नवोदित प्रतिभाशाली कलाकारों की कोई कमी नहीं है लेकिन उनका सही उपयोग करने वाले निर्माता निर्देशकों की कमी है।समाज को नई दिशा देने वाली संदेशपरक फिल्मों का अभाव हो गया है…यह फिल्म इंडस्ट्री व देश के लिए शुभ संकेत नहीं है…”।
80वर्ष की उम्र में भी अभिनेता मेजर आनंद एकदम तरोताजा दिखाई देते हैं।उनकी आंखों की चमक और दिल में भरा उमंग जो उनका चेहरा बयां करता है उससे साफ जाहिर होता नजर आता है कि वो आज भी पूरी तत्परता से अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कर्मपथ पर अग्रसर हैं।
बात चीत का सिलसिला थमा तो उनकी खामोश निगाहें कह रही थीं….
दिल का सुना साज तराना ढूंढेगा
मुझको मेरे बाद ज़माना ढूंढेगा….!