लिखते ही कवि मर जाता है
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प्राण, शब्द में भर जाता है
लिखते ही कवि मर जाता है
फिर नूतन रचना की खातिर
प्रतिदिन कवि दर दर जाता है
साथ हमेशा कविता रहती
चाहे गाँव, शहर जाता है
जो कविता को खेल समझते
वापस अपने घर जाता है
वो सदियों तक यादों में जो
सच्चा लेखन कर जाता है
कुछ लेखन ऐसे जो पढ़के
माथे के बाहर जाता है
खाली होता जब दिमाग तो
भाव सुमन भर भर जाता है
श्यामल सुमन
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