झारखण्ड वाणी

सच सोच और समाधान

क्यों पड़ोस में क्रन्दन होता?

क्यों पड़ोस में क्रन्दन होता?
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समझ न पाया कहाँ अन्त है?
इच्छा भी सबकी अनन्त है।
काम करे सब अपने ढंग से, जिसको जैसा साधन होता।
यारों मिलती जिसे सफलता, उसके यश का वंदन होता।।

पद, पैसा, प्रभुता की खातिर, रिश्ते नाते छूट रहे।
मूल्यबोध और नैतिकता के, बन्धन सारे टूट रहे।
गलत राह से जो पद पाते, क्यूँ उसका अभिनन्दन होता?
यारों मिलती जिसे —–

विद्यालय का ज्ञान-दान भी, उन्नत सा व्यापार बना?
गयी रसातल मानवता भी, कैसा यह संसार बना?
खुशी मनाओ, मगर सोचना, क्यों पड़ोस में क्रन्दन होता?
यारों मिलती जिसे —–

है विवेक मानव का गहना, हम विवेक से दूर हुए।
बस कुबेर के घर में खुशियाँ, आमलोग मजबूर हुए।
अभी वक्त है, सुमन संभल जा, अगर हृदय स्पन्दन होता!
यारों मिलती जिसे —–

श्यामल सुमन