

नई दिल्ली: मिथिला स्टेट की मांग बहुत पुरानी है. बोले तो आजादी से भी पहले की. 1912 में जब बिहार बंगाल प्रोविंस से निकल कर एक अलग स्टेट बना. उसी समय से एक अलग मिथिला स्टेट की मांग शुरू हो गई थी. तब से लेकर अब तक बिहार राज्य से निकलकर 1936 में ओडिशा और 2000 में झारखंड अलग राज्य बन चुके हैं. वहीं दूसरी तरफ अलग मिथिला राज्य की मांग चलती रही. मिथिला राज्य के एक्टिविस्ट दो मांगों को लेकर प्रोटेस्ट करते रहे. पहली मांग थी, ‘मिथिलांचल’ के नाम से एक अलग मिथिला राज्य बनाना. और दूसरी मांग मैथिली भाषा को भारत सरकार की आठवीं अनुसूची में शामिल करना. झारखंड के अलग राज्य बनाने के बाद से ये मांगें और भी तेज हो गईं


इन्हीं यूथ में से एक लड़का और मिथिला मुक्ति मोर्चा के सेक्रेटरी “कुणाल झा” ने बताया “पहली बात तो हम बिहारी नहीं हैं, हम मैथिल हैं और यही हमारी पहचान है. हमारे मिथिला को जबरदस्ती बिहार में मिला दिया गया है. और बिहार में हमारे साथ भेदभाव किया जाता है. यहां तक कि बिहार गीत में भी मैथिली और मिथिला की उपेक्षा की गई है. पूरे बिहार गीत में ना तो कवि विद्यापती है ना हीं मां जानकी. विकास के नाम पर भी मिथिला की उपेक्षा की गई. आज कोई भी कारखाना, यूनिवर्सिटी खोलने की मांग होती है तो उसे मगध एरिया में धकेल दिया जाता है. आईआईटी की बात हो या सेंट्रल यूनिवर्सिटी की. मिथिला हमेशा से उपेक्षित रहा है. और यही वजह है जो अलग मिथिला राज्य के आंदोलन को बढ़ावा दे रहा हूँ.”



वहीं दूसरी ओर मिथिला राज्य की मांग को लेकर पिछले 25 वर्षों से आंदोलन कर रहे अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति के अध्यक्ष डां० बैजनाथ चौधरी बैजू ने कहा कि अलग मिथिला राज्य की मांग को लेकर पांच अगस्त से शुरू हो रहे संसद के सत्र से लेकर सत्रांत तक संसद के सामने धरना-प्रदर्शन कि या जायेगा। उन्होंने दरभंगा, तिरहुत, कोशी, पूर्णियां, मुंगेर, भागलपुर और झारखंड के दुमका प्रमंडल को मिलाकर अलग मिथिला राज्य के गठन की मांग की है।



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