कविता ही भगवान मुसाफिर
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इक दूजे को ज्ञान मुसाफिर
लेकिन प्रश्न समान मुसाफिर
बिनु अनुभव के बाँट रहे सब
क्या होते भगवान मुसाफिर
जब संकट में जान मुसाफिर
लुप्त वहाँ सब ज्ञान मुसाफिर
जाने अनजाने सब कहते
बचा मुझे भगवान मुसाफिर
रखो सभी का ध्यान मुसाफिर
करना सबका मान मुसाफिर
कौन जानता बुरे वक्त में
कौन बने भगवान मुसाफिर
कहीं इबादत, ध्यान मुसाफिर
जीवों का बलिदान मुसाफिर
पर भूखों को दिखता हरदम
रोटी में भगवान मुसाफिर
प्रायः सब अनजान मुसाफिर
कहाँ छुपा भगवान मुसाफिर
दूत कहे भगवन के अक्सर
परिचित हैं भगवान मुसाफिर
जहाँ विवश विज्ञान मुसाफिर
तब टूटे अभिमान मुसाफिर
उसी विवशता में खोजो तो
खड़ा मिले भगवान मुसाफिर
कुछ को धन का मान मुसाफिर
कई अरजते ज्ञान मुसाफिर
अन्तर्मन से सुमन सोचता
कविता ही भगवान मुसाफिर
श्यामल सुमन
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