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कोरोना वायरस को दी मात, लेकिन मिथकों ने हराया !

कोरोना को मात देकर ठीक हुए मरीजों को सामाजिक मुख्यधारा में आने में वक्त लग रहा है. बता दें कि कोविड-19 ने लोगों की जिंदगी बदल कर रख दी है. संक्रमण से ठीक हुए लोग अब बनेंगे जीवन रक्षक.
सरायकेला: 30 वर्षीय युवक रोजी-रोटी की तलाश में अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर महानगर जाता है. कड़ी मेहनत मशक्कत कर अपना और अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए कुछ पैसे कमाता है. लेकिन 3 महीने पहले अचानक कोरोना के दस्तक देने के बाद युवक की जिंदगी बदल गई. महानगर से अपने गांव आने के बाद युवक संक्रमित हो गया. जिसके बाद मानों युवक इस मानवीय दुनिया से अलग ही कट गया. आज इस युवक को कोरोना स्वस्थ हुए लम्बा समय बीत चुका है, लेकिन आज भी यह युवक सामाजिक तौर पर लोगों से नहीं मिल पाता और सामाजिक मुख्यधारा में इसे लौटने में न जाने और कितना वक्त लगेगा. युवक
मानता है कि संक्रमित होने में इसकी कोई गलती नहीं है, न चाह कर भी लोग संक्रमण से ग्रसित हो जाते हैं.
संक्रमण से ग्रसित होने के बाद लोगों में हीन भावना का आना स्वभाविक हो जाता है. ऐसे में जानकार मानते हैं कि संक्रमित होने और इलाज के बाद ठीक होकर वापस लौट रहे मरीजों के मनोबल और मोरल बूस्टप्प को बढ़ाना जरूरी हो जाता है. संक्रमण काल के दौरान ही संक्रमित मरीजों को यह आत्मविश्वास दिलाना होगा कि वह जल्द से जल्द ठीक हो सकते हैं और इस कोरोना से लड़ाई में जीत हासिल कर सकते हैं. वहीं, जानकार मानते हैं कि संक्रमण दौर से गुजरने के बाद की अवधि संक्रमित व्यक्ति के लिए अति महत्वपूर्ण होता है. क्योंकि इस दौर में व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्थिति में कई
बदलाव होते हैं. इस दौर में संक्रमित व्यक्ति को यह आत्मविश्वास दिलाना होगा कि वह इस दौर के बाद फिर से अपने जीवन की नई शुरुआत बेहतर तरीके से कर सकता है.
संक्रमण से ठीक हो जाने के बाद मरीजों को अपने आप को सुरक्षित रखना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. डॉक्टर बताते हैं कि क्वॉरेंटाइन की अवधि पूरा करने के बाद स्वस्थ होकर मरीज जब घर लौटते हैं तो उन्हें फिर से सात या चौदह दिनों तक क्वॉरेंटाइन किया जाता है, ताकि वह खुद और दूसरों को भी सुरक्षित रख सकें. जिले के सिविल सर्जन डॉ हिमांशु भूषण बरवार ने बताया कि कई मामलों में रिसर्च से यह बात सामने आई है कि कॉविड से रिकवर हुए मरीजों के मल-मूत्र से भी संक्रमण फैलने का खतरा बरकरार रहता है. ऐसे में स्वस्थ हुए मरीजों को इस बात का एहतियात जरूर बरतना चाहिए. वहीं, जिले के सिविल सर्जन बताते हैं कि कोरोना से
संक्रमण के इस दौर में जहां स्वस्थ हुए मरीजों को छुआ-छूत का सामना करना पड़ता है. वहीं, ऐसे लोग संक्रमण से ग्रसित दूसरे मरीजों के लिए जीवन रक्षक बन रहे हैं. संक्रमण से ठीक होने के बाद व्यक्ति के शरीर में मौजूद एंटीबॉडी और रक्त में मौजूद प्लाज्मा कोरोना से जूझ रहे. मरीजों की इलाज में 100 फीसदी कारगर साबित होते हैं. ऐसे में संक्रमण से ठीक हुआ व्यक्ति लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है. कई महानगरों में एंटीबॉडी और प्लाज्मा डोनेट थेरेपी अपनाकर कोरोना के मरीजों को स्वास्थ्य कर नई जिंदगी दी जा रही है. वहीं, अब झारखंड सरकार भी इस ओर पहल कर रही है. सरकार की घोषणा के बाद अब जल्द ही झारखंड में भी प्लाज्मा थेरेपी और एंटीबॉडी से कोरोना मरीजों का बेहतर इलाज हो सकेगा.
वहीं, दूसरी तरफ डॉक्टर बताते हैं कि कोरोना से स्वस्थ होने के बाद भी मरीजों के स्वास्थ्य में अन्य बीमारियों के लक्षण पाए जाते हैं. ऐसे में स्वस्थ होने के बाद मरीजों को अधिक से अधिक अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत होना होगा और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ शारीरिक देखभाल भी करना बहुत जरूरी होगा.
जानकार बताते हैं कि संक्रमण का दायरा अभी और बढ़ने वाला है. ऐसे में संक्रमण से ठीक हुए लोगों के डेटाबेस को तैयार कर उन्हें अपने प्लाज्मा सेल और एंटीबॉडी डोनेट करने के प्रति अधिक से अधिक जागरूक करना चाहिए , ताकि अन्य मरीजों की इलाज में इसका लाभ मिल सके. जानकार यह भी बताते हैं कि जिस तरह रक्तदान शिविर आयोजित कर सामाजिक कार्यकर्ता रक्त की कमी को दूर करते हैं. ठीक उसी तरह कोरोना से लड़ रहे लोगों के स्वास्थ्य के रक्षा को देखते हुए अब सामाजिक तौर पर भी संक्रमण से मुक्त हुए लोगों की सहयोग से प्लाज्मा और एंटीबॉडी डोनेट किए जाने के मुहिम
को तेज किया जाना चाहिए. इस संक्रमण काल में निश्चित तौर पर कोरोना से जंग जीतकर लौटे ये लोग आज किसी धरोहर से कम नहीं, जरूरत है तो बस एक सकारात्मक पहल करने की.