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कोरोना वैक्सीन पर क्या अमरीका, ब्रिटेन और चीन जैसे देशों का ही पहला हक़ होगा

कोरोना वायरस की वैक्सीन विकसित करने में ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी को बड़ी क़ामयाबी मिली है. यूनिवर्सिटी की इस वैक्सीन को इंसानों के लिए सुरक्षित पाया गया है.

हालाँकि ये शुरूआती रुझान है. आगे इसका और लोगों पर ट्रायल होना बाक़ी है. यूनिवर्सिटी ने ह्यूमन ट्रायल के दौरान यह पाया कि इस वैक्सीन से लोगों में कोरोना वायरस से लड़ने की इम्युनिटी यानी वायरस से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई.

सोमवार को चीन में फेज टू के दौरान ट्रायल की जा रही वैक्सीन का रिजल्ट सामने आया है. दि लैंसट की रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन को भी सकारात्मक रुझान मिले हैं.

एक हफ़्ते पहले ऐसी ही ख़बर अमरीका से भी आई थी. दावा किया गया कि अमरीका में नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ़ हेल्थ और मोडेरना इंक ने मिल कर जो वैक्सीन विकसित की है, उनके शुरुआती ट्रायल में लोगों के इम्युन को वैसा ही फ़ायदा पहुँचा है, जैसा वैज्ञानिकों ने उम्मीद की थी. इस वैक्सीन के आगे के फेज़ के ट्रायल अभी बाक़ी हैं.

फ़िलहाल दुनियाभर में कोरोना वायरस की 23 वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं. किसी भी वैक्सीन के सफल परीक्षण के बाद उसके नतीजों के आधार पर सामूहिक इस्तेमाल की इज़ाजत संस्थाएँ देती हैं और उसके बाद बारी आती है बड़े पैमाने पर बनाने और वितरित करने की ज़िम्मेदारी.

फ़ैसिलिटी नाम का एक फ़ॉर्मूला तैयार किया है, जिसमें दुनिया के 75 देशों को शामिल होने की इच्छा जाहिर की है.

ये फ़ॉर्मूला इस बात के लिए है ताकि विश्व के सभी देशों को जल्द, पारदर्शी तरीक़े से एक बराबर मात्रा में वैक्सीन मिले. अमीर और ग़रीब देशों का इसमें भेद ना रहे.

विश्व स्वास्थ्य संगठन चाहता है कि  ये 75 देश मिल कर ना सिर्फ़ इसके लिए फ़ंड सुनिश्चित करें कि उनके देश की जनता के लिए वैक्सीन मिले, बल्कि 90 दूसरे ग़रीब देशों में भी इसकी सप्लाई समय रहते हो सके, इसका ख्याल रखें और फ़ंडिंग दें.

कोवेक्स फ़ैसिलिटी का मुख्य उद्देश्य हर देश की उस 20 फ़ीसदी आबादी को सबसे पहले वैक्सीनेट करने की है, जिनको कोरोना की चपेट में आने का सबसे ज़्यादा ख़तरा है.