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किसान पिता ने खेतीबाड़ी कर पढ़ाया, बेटे को मिला पद्मश्री सम्मान

किसान पिता ने खेतीबाड़ी कर पढ़ाया, बेटे को मिला पद्मश्री सम्मान
74वां गणतंत्र दिवस झारखंड के लिए खुशियां लेकर आया. झारखंड के एक लाल को पदमश्री से सम्मानित किया गया है. वह लाल हैं हो भाषा के विद्वान जानुम सिंह सोय. चाईबासा के रहने वाले सोय किसान परिवार से आते हैं. उनके पैतृक गांव में भी खुशी की लहर है.

चाईबासा: कोल्हान विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष रह चुके हो साहित्यकार डॉ जानुम सिंह सोय को हो भाषा साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिये देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा जाएगा. इसके लिये केंद्र सरकार ने घोषणा कर दी है. पद्मश्री के लिये चुने जाने के बाद उनके पैतृक गांव में जश्न का माहौल है. उनके घरवालों को बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है.
इसी क्रम में  सांसद प्रतिनिधि विश्वनाथ तामसोय, हो साहित्यकार डोबरो बुड़ीउली, हो भाषा शिक्षक चंद्रमोहन हेंब्रम, पूर्व शिक्षक सनातन बिरुवा और ओएनजीसी के रिटायर्ड अधिकारी कैरा बिरुवा आदि ने गितिललोंगोर जाकर उनके घरवालों से मुलाकात की. जानुम सिंह के छोटे भाई रामनाथ सोय और उनके घरवालों को बधाई भी दी. ज्ञात हो कि जानुम सिंह सोय का यह गांव ईचा-खरकई डैम के डूब क्षेत्र में पड़ता है. वे हमेशा गांव आते-जाते रहते हैं.
कोल्हान विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष रह चुके डॉ जानुम सिंह सोय तांतनगर प्रखंड के कोकचो गांव के गितिललोंगोर टोले के मूल निवासी हैं. लेकिन लंबे समय से घाटशिला में रह रहे हैं. ईचा-खरकई डैम के कारण गांव से विस्थापित होने वाले जानुम सिंह का गितिललोंगोर की तरह वहां भी उनका अपना घर है और उनका छोटा सा परिवार भी साथ में रहता है. साथ ही वहां धान की खेतीबाड़ी भी करते हैं. वहां उनके कई खेत भी हैं. छोटे भाई रामनाथ सोय के अनुसार कुंवारे थे तभी से जानुम सिंह वहीं रह रहे हैं. फिलहाल उनकी उम्र 72 वर्ष है.
डॉ जानुम सिंह सोय ने सोसोगोड़ा, मुसाबनी की रहने वाली हीरा बानरा से शादी की है. पत्नी भी नौकरी करती थी. वह स्कूल टीचर थी. अब रिटायर्ड हैं. जानुम सिंह सोय को एक बेटा और दो बेटियां हैं. सभी नौकरीशुदा भी हैं. बेटा जयसिंह सोय वहीं मझगांव में उत्क्रमित मध्य विद्यालय में हेडमास्टर हैं. जबकि बेटी मनीषा सोय एफसीआई में असिस्टेंट मैनेजर हैं तो एक और बेटी मधुरिमा सोय हैदराबाद के एक प्रतिष्ठित प्राईवेट कंपनी में बड़ी पोस्ट होल्डर रह चुकी हैं.
डॉ जानुम सिंह सोय अपने पंचायत के सबसे पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं. साथ ही उनकी पूरी फैमिली भी उच्चशिक्षित है. जानुम सिंह ने प्राथमिक शिक्षा कोकचो तथा तोरलो गांव स्थित स्कूलों से पूरी की. जबकि हाईस्कूल की शिक्षा चाईबासा स्थित मांगीलाल रुंगटा हाईस्कूल से ली. चाईबासा स्थित टाटा कॉलेज से हिंदी ऑनर्स में बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री ली. फिर रांची यूनिवर्सिटी से एमए, फिर यहीं से बीएड की डिग्री भी हासिल की. जबकि पीएचडी की शिक्षा उन्होंने हो लोकगीत साहित्य तथा हो संस्कृति विषय में इसी रांची यूनिवर्सिटी से की. हिंदी तथा हो भाषा में उनकी जबरदस्त पकड़ है.

डॉ जानुम सिंह सोय के पांच भाई तथा चार बहनें थीं. दो भाईयों की मृत्यु हो चुकी है. अब केवल चार बचे हैं. जबकि सभी चार बहनों की मृत्यु हो चुकी है. दो भाई कैलाश चंद्र सोय तथा मनोज कुमार सोय शिक्षक की नौकरी से रिटायर्ड हैं और फिलहाल चाईबासा में घर बनाकर रहते हैं. एक और भाई गुरूचरण सोय इंडियन ऑयल में इंजीनियर थे. कोरोना काल में इनकी भी मृत्यु हो चुकी है. जानुम सिंह सोय की चारों में से एक बहन पालो सोय भी टीचर थी. अब उनकी भी मृत्यु हो चुकी है. एक और भाई रामनाथ सोय हैं जो गांव में रहते हैं और खेतीबाड़ी का काम देखते हैं. इनकी चार साल की एक बेटी है. रामनाथ सोय की बीवी का नाम रिसे सोय है. गांव में भी उनका कच्चा तथा पक्का दोनों तरह के मकान हैं. रामनाथ सोय ने बताया कि आज भी उनके भाईयों के बीच संपत्ति का बंटवारा नहीं हुआ है. फलत: गांव में वे परिवार में संयुक्त रूप से ही रह रहे हैं.
हो साहित्यकार डोबरो बुड़ीउली तथा जानुम सिंह सोय के भाई रामनाथ सोय के अनुसार, जानुम सिंह सोय को हिंदी के अलावे हो भाषा तथा इनकी लिपि वारंग क्षिति से भी बेहद लगाव है. इस कारण वे इसके अच्छे ज्ञाता भी हैं. हो समाज के रीति-रिवाजों तथा पर्व-त्योहारों से भी खासा लगाव है. इस कारण जब भी गांव में पर्व-त्योहार होता है तो वे घाटशिला छोड़कर चले आते हैं. लोगों से मिलते हैं और नाचगान में भी शामिल होते हैं. आमतौर पर वे अंतर्मुखी स्वाभाव के शांत व्यक्ति हैं. गांव के लोग साहेब कहकर पुकारते हैं. सादगीपूर्ण जीवन तथा शालीनता उनकी पहचान है
हो साहित्यकार डॉ जानुम सिंह सोय ने हो भाषा में चार कविता संग्रह तथा एक उपन्यास समेत छह पुस्तकें लिखीं हैं जो प्रकाशित हो चुकी हैं. हो कुड़ि नामक उपन्यास में उन्होंने क्षेत्रीय समस्या यथा ईचा-खरकई विस्थापन, आदिवासी अस्मिता तथा डैम विरोधी आंदोलन के प्रणेता शहीद गंगाराम कालुंडिया के संघर्ष को रेखांकित किया है. साथ ही खुदके परिवार की ज्वलंत सामाजिक तथा पारिवारिक संघर्षों के ताने-बाने को भी बखूबी उकेरा है. यह उपन्यास हो समाज में कालजयी तुल्य है. इसके अलावे उनका प्रथम काव्य संग्रह बाहा सागेन भी प्रकाशित हुआ है. जिसमें हो संस्कृति, लोकगीत, पर्व-त्योहार,परंपरा आदि समाहित हैं. रामनाथ सोय के मुताबिक जानुम सिंह जब भी गांव आते हैं तो अपनी ही मातृभाषा हो में बात करना पसंद करते हैं. रामनाथ सोय की बीवी रिसे सोय ने कहा कि उनको बुधवार शाम को पता चला कि उनके भैसुर जानुम सिंह सोय को पद्मश्री मिलने वाला है. रात से ही फोन पर बधाई देने का सिलसिला जारी है.