सिमडेगा जिला में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर रामरेखा धाम में काफी सख्यां में भक्तों की भीड़ देखने को मिली. जहां कोरोना वायरस से बचाव के लिए जारी नियमों को पालन करते हुए भक्तों को दर्शन कराया गया.
सिमडेगा: जिला के श्रीरामरेखा धाम में कार्तिक पूर्णिमा पर पूजा अनुष्ठान के साथ विशेष पूजा पाठ किया गया. महंत उमाकांत महाराज ने प्रभु पुरुषोत्तम श्रीराम से देशवासियों के लिए सुख समृद्धि की कामना की गई. ब्रह्मलीन बाबा श्री श्री 1008 जयराम प्रपन्न जी महाराज को याद करते हुए अपने अंदर की बुराइयों को खत्म करते हुए भारतीय धर्म संस्कृति बचाने एवं सेवा कार्य करने के लिए शक्ति प्रदान करने के लिए प्रार्थना की गई.
कोविड-19 के नियमों का किया गया पालन
श्रीरामरेखा धाम में दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने दर्शन एवं पूजन विधि-विधान पूर्वक कोविड-19 के नियमों को पालन करते हुए किया गया. विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष और रामरेखा धाम विकास समिति के संरक्षक कौशल राज सिंह देव ने श्रद्धालुओं के बीच कार्तिक पूर्णिमा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा इस दिन पूर्ण श्रद्धा के साथ गंगा स्नान दीप दान, हवन, यज्ञ अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान गरीबों को भोजन कराने से सभी सांसारिक पापों से छुटकारा मिलता है.
कोविड के मद्देनजर इस वर्ष अन्य वर्षों की तुलना में कम भीड़ हुई और मेले का आयोजन नहीं किया गया. इसके तहत सिर्फ घार्मिक अनुष्ठान हुआ. रामरेखा परिसर के बाहर कुछ पूजा सामग्रियों के दुकाने नजर आई. श्रीरामरेखा धाम विकास समिति के कर्याकर्ता एवं अधिकारी सहित पुलिस प्रशासन श्रद्धालुओं की सेवा और व्यवस्था में लगे हुए हैं.
इस दिन किए जाने वाले धन और वस्त्र दान का भी बहुत महत्व है. उन्होंने कहा सृष्टि के प्रारंभ से ही कार्तिक पूर्णिमा की तिथि बड़ी ही खास रही है. पुराणों में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान व्रत तप और दान को मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है. हिंदू पंचांग के अनुसार साल का आठवां महीना कार्तिक मास कहलाता है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है. प्रत्येक वर्ष 15 पूर्णिमा होती है. जब अधिक मास या मलमास आती है तब इनकी संख्या बढ़कर 16 हो जाती है. हिंदू धर्म में इस तिथि को पवित्र मानने के पीछे एक कारण यह भी है कि इस दिन को ब्रह्मा विष्णु शिव अंगिरा और आदित्य जैसे देवताओं का दिन माना गया है. इसी दिन
भगवान विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्य अवतार हुआ था. भगवान का यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्त ऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था. इससे सृष्टि को निर्माण कार्य फिर से आसान हुआ.
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