जमशेदपुर। कोरोना से मरने वालों का शव ढोते-ढोते जमशेदपुर अक्षेस के एक ठेका मजदूर विश्वकर्मा लकड़ा (28) की गुरुवार को कोरोना से मौत हो गई। वह 11 अगस्त से एमजीएम अस्पताल के कोविड वार्ड में इलाजरत था। उसके परिजनों ने मुआवजे की मांग को लेकर शव को लेने से इनकार कर दिया और एमजीएम में हंगामा किया।
पुराना सीतारामडेरा निवासी मृतक के छोटे भाई ने बताया कि मृतक पिछले करीब तीन वर्ष से जेएनएसी में ठेके के तहत सफाई कर्मी का काम करता था। कोरोना महामारी के बाद उसे ठेकेदार द्वारा शवों को ढोने के काम में लगा दिया गया। कुछ दिनों पूर्व उसे सर्दी, खांसी व बुखार की शिकायत पर एमजीएम लाया गया। जांच में कोरोना की पुष्टि के बाद एमजीएम कोविड वार्ड में 11 अगस्त को भर्ती कराया गया, जहां इलाज के क्रम में बुधवार शाम 6.30 बजे उसकी मौत हो गई।
विश्वकर्मा की मौत से आक्रोशित परिजनों ने आरोप लगाया कि उससे कोरोना संक्रमितों के शव ढोने का काम जबरन कराया जाता था। उसे पीपीई, मास्क और सेनिटाइजर तक नहीं दिया जाता था। परिजनों ने कोरोना से मौत पर सफाई कर्मियों को सरकार की ओर से दी जाने वाली मुआवजे की राशि की मांग करते हुए शव को लेने से इनकार कर दिया। मौके पर पहुंचे जेएनएसी के नगर प्रबंधक रवि भारती ने परिजनों को समझा-बुझाकर शांत कराया। इसके बाद जाकर शव का भुइयांडीह बर्निंग घाट में अंतिम संस्कार किया गया।
विश्वकर्मा लकड़ा शव ढोने का नहीं, बल्कि दफनाने के दौरान कब्र में मिट्टी डालने का काम करता था। पहले वह साफ-सफाई का काम करता था। एक महीने पहले ही उसको सफाई के काम से हटा दिया गया था। परिजनों का आरोप गलत है। शव ढोने या दफनाने वाले हर कर्मचारी को पीपीई किट, मास्क आदि अनिवार्य रूप से आदेश दिया जाता है।- कृष्ण कुमार, कार्यपालक पदाधिकारी, जेएनएसी
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