जैसे दाँत अलग खाने के
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अपने अपने तर्क सभी के, खोने, पाने के होते
जैसे दाँत अलग खाने के, और दिखाने के होते
जिन आँखों से सूखा पानी, उनकी दुनिया बेमानी
आँखों में रख वो पानी जो, नहीं बहाने के होते
बच्चे को भी रोने पर ही, अक्सर खाना मिलता है
सबको रोटी पाने का हक, सभी जमाने के होते
उस माटी की सेवा में हम, जहाँ पे हमने जन्म लिया
मगर देश भक्ति अब है जो, उनके माने के होते
सबसे बड़ो समाज हमेशा, नहीं भूलना कभी सुमन
लोक जागरण जिस समाज में, वही ठिकाने के होते
श्यामल सुमन
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