

कोरोना में बकरीद का त्योहार भी फीका नजर आ रहा है. सालों से बकरों को खिला-पिलाकर तैयार कर रहे विक्रेताओं के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है. लॉकडाउन में कोई खरीददारी नहीं मिलने से वे काफी निराश हैं.
गोड्डाः कोरोना का असर सीधे-सीधे पशुपालकों पर भी साफ दिख रहा है. उनके सालों की मेहनत के बाद तैयार पशु के खरीददार नहीं मिल पा रहे हैं. उनका कहना है कि पशुओं के बिक जाने से उनका त्योहार भी अच्छा हो जाता.
दरअसल, मुस्लिम समुदाय का त्योहार बकरीद सामने है, लेकिन कोरोना के मद्देनजर भीड़-भाड़ वाले हाट-बाजार को पूरी तरह से बंद रखा गया. वहीं लोगों को हिदायत दी गयी है कि वे अपने घरों में रहकर ही ईद-उल-जोहा का त्योहार मनाएं, लेकिन इसका असर सीधे उन पशुपालकों पर पड़ा है जो पहले से पशु खिला-पिला कर तैयार कर रहे थे. ताकि उनकी अच्छी कीमत मिले. वहीं गोड्डा के जमनी पहाड़पुर के रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि पूरे दो साल से मेहनत कर एक बकरे को तैयार किया जाता है. जिसका वजन 130 किलो है और अनुमानित मूल्य 1.5 लाख रुपये है. उन्हें उम्मीद थी कि इसकी कीमत अच्छी मिली तो उनका मेहनत सफल होगा और उनका भी बकरीद खुशी-खुशी बीतेगा, लेकिन लॉकडाउन के कारण ऐसा नहीं होने से वे थोड़े निराश जरूर है





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